रविवार, जुलाई 31, 2011

शहादत अनमोल है इसका मोल मत लगाइए..........

हिंदुस्तान ही एक एसा देश है जिसमे बिना किसी भी स्वार्थ के कई वीरो ने अपनी धरती माँ की सेवा के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी ,उन के बारे में जब भी चिंतन किया जाता है तो आँखे नम हो जाती है , इन वीरो को ये नहीं पता था की जिस देश के लिए हम जान दे रहे है उस देश में नेता के नाम पर चोर भर जायेंगे , उन शहीदों की आत्मा आज भी इस देश को देख कर तडपती होगी ,सोचता होगा भगत सिंह की किन लोगो के लिए मैंने अपने प्राण गवा दिए जिन को आपस में लड़ने से फुर्सत नहीं है वो देश का भला क्या करेंगे ,जो अपना घर भरने में लगे हो वो देश की चिंता क्यों करेंगे...........................                                               

""शहादत अनमोल है इसका मोल मत लगाइए 
शहीदों की अमर गाथा को कमजोर मत बनाइये 
हमने नहीं माँगा कोई मोल शहादत का 
शहादत को इस दुनिया में मखौल मत बनाइये"" 
जय हिंद .............

शनिवार, जुलाई 30, 2011

माँ के दूध का असर.................

 























पहले मातायें अपने छोटे बच्चों को अपना 
दूध पिलाती थी तो बच्चा बड़ा बनकर 
इन्सान बनता था.. अब मातायें अपने 
फिगर ख़राब होने के डर से डिब्बा या
जानवर का दूध पिलाती है, तो बच्चा 
बड़ा होकर डिब्बा या जानवर ही बनता  है
मेरी सभी मातावों और बहनों से विनती है
कि बच्चो को इन्सान बनाये................

गुरुवार, जुलाई 28, 2011

शिवरात्रि साल में दो बार क्यों आती है......

मित्रवर!.. अपने प.पू. गुरुदेव की वाणी के अनुसार मैं आपके प्रश्न का उत्तर
देने का प्रयत्न कर रहा हूँ. पहला प्रश्न कि शिवरात्रि साल में दो बार
क्यों आती है.. मुझे लगता है कि शायद आप नव रात्र के बारे में पूछ रहे
हैं..एक तो जब ग्रीष्म ऋतु समाप्त होती है और शिशिर ऋतु का आरम्भ होता है..तथा दूसरी जब जाड़ा समाप्त होता उसे ग्रीष्म ऋतु की शुरुवात  होती है, जिसे वासंतीय नवरात्र कहते हैं. पहले तो ये नव रात्र कहे जाते हैं न की नव रात्री, रात्र का अर्थ समय होता है. दो नवरात्र होने का कारण वैज्ञानिक भी है. शारदीय नवरात्र के पूर्व नया मौसम शुरू होने वाला होता है, बरसात के बाद का समय होता है, लोगों को अपने को नए मौसम के अनुरूप ढालने अपनी दिनचर्या में बदलाव लाने हेतु और खान-पान में बदलाव लाना जरूरी होता है. क्योंकि गर्मी और बरसात में मनुष्य की जठराग्नि कमजोर होती है.. जाड़े में भूख ज्यादा लगती है जठराग्नि बढ़ जाती है..वासंतीय नवरात्र में ठीक इसके विपरीत स्थिति होती है.. एक मौसम समाप्त होकर नया मौसम की तैय्यारी करनी होती है.. इसलिए हमारे ऋषि-मुनियों ने ये दो नवरात्र का विधान रखा. ताकि लोग मौसम परिवर्तन के अनुकूल अपनी दिनचर्या अपने खानपान को ठीक करले.. और नवरात्र में उपवास और व्रत का भी विधान इसीलिए बनाया कि वे अपना पाचन-तंत्र सही करलें.. रात्र नौ ही क्यों होते हैं.. इसके  पीछे भी कारण हैं. मनुष्य के अंदर नौ शक्तियां सोई पड़ी रहती हैं..साल में दो बार नवरात्र के दौरान व्रत-उपवास के साथ -साथ अपनी उन नव शक्तियों को भी जाग्रत करने का अवसर मिलता है.. इन सबको धर्म से जोड़ दिया गया क्यों कि मनुष्य धर्म-भीरु है.. तो उसका पालन करेगा और अदृश्य शक्ति से अपने मन को जोड़ेगा .. तो उसे उसका
सहारा भी मिलेगा.. और अपना ध्यान भी केन्द्रित कर
सकेगा.....धन्यवाद!!!

बुधवार, जुलाई 27, 2011

किसके लिए मर गए ..............

कभी हम युवराज के छक्के और
धोनी के बालों के लिए मर गए...
कभी हम मधुबाला के चेहरे और
कैटरीना कि चालों के लिए मर गए...
कभी हम अमेरिका के वीसा और
IT की Job के लिए मर गए........
कहीं होंगे भगत सिंह तो कहते होंगे -
यार सुखदेव, राजगुरु .....
हम भी किन सालों के लिए मर गए..
.


मंगलवार, जुलाई 26, 2011

शरीर और आत्मा के फर्क को आसानी से नहीं समझा जा सकता है...........

शरीर और आत्मा के फर्क को आसानी से नहीं समझा जा सकता है। लोग शरीर को ही सबकुछ मान लेते हैं और आत्मा को भूल जाते हैं।
हमारे शास्त्रों ने आत्मा पर सा ध्यान केंद्रित किया है। शरीर और आत्मा के
बीच के अंतर को समझने में समय भी लगता है और ज्ञान भी। यह अंतर जिसे समझ में आ जाता है उसे दोनों तरह की सफलताएं मिलती हैं भौतिक भी और आध्यात्मिक भी।एक व्यक्ति ने महात्मा से प्रश्र किया। महात्मा जी आत्मा और शरीर के बारे में बताइए महात्मा जी ने उस आदमी को बहुत देर तक समझाया लेकिन उनकी समझ में कुछ नही आया। तो उन्होने एक प्रयोग किया। अपनी झोली में हाथ डाला और उसमे से आम निकालकर उन्होने उस आदमी को दिया। उसे कहा कि इस आम को संभाल कर रखे। व्यक्ति ने उसे संभालकर एक डिब्बे में रख दिया। महात्मा जी ने दस दिन बाद लौटकर उस आदमी से कहा जाओ फल मेरे सामने ले आओ। व्यक्ति ने डिब्बा लाकर महात्मा जी को डिब्बा लाकर दे दिया। महात्मा जी ने जैसे ही डिब्बा खोला और आम को हाथ में लेकर बोले जैसा सुन्दर आम मैंने तुम्हे दिया वैसा ही तुमने मुझे क्यों नही लौटाया। वह आदमी बोला मैंने तो आम को हाथ तक नही लगाया।डिब्बा बंद कर रखा था। किसी का हाथ इस तक नही पहुंचने दिया।लेकिन जहां इंसान का हाथ नही पहुंचता वहा भगवान का हाथ पंहुचता है, ताले इंसान के लिए हैं, भगवान के लिए नही उसका हाथ अंदर गया और उसे बिगाड़ गया। महात्मा जी ने कहा इसका रंग रुप कहां गया?वह बोला महाराज हर एक चीज समय के साथ बिगडऩे लगती है। महात्मा ने कहा क्या गुठली भी खराब हो गई। वह बोला नहीं। अब हम तुम्हें यही तो समझाना चाहते हैं कि आम का छिलका बाहर से गल गया, सड़ गया लेकिन गुठली खराब नहीं हुई। ऐसा ही तुने छिलका धारण किया हुआ है। जिसे शरीर कहते हैं। यह एक दिन सड़ जाएगा, गल जाएगा लेकिन जैसे गुठली का कुछ नहीं बिगड़ता, वैसे ही हमारी आत्मा सदा के लिए होती है। एक आम की गुठली तरह आत्मा फिर से शरीर धारण करेगी। तुम शरीर की चिंता मत करो। आत्मा की चिंता करो।

ईश्वर की मित्रता .......................

"जीवन एक संग्राम है और निडर होकर ही
उसका डटकर सामना करना पड़ता है | 
यह भावना तभी ढृढ़ होती है , जब ईश्वर की
मित्रता का मन में विश्वास होता है |फिर थकावट
नहीं लगती और मन को विश्राम मिलता है |रेलगाड़ी
में स्थान सुरक्षित करने पर सफ़र में विश्राम किया
तो भी मंजिल पर पहुचने का अटल भरोसा होता है,
क्योंकि चलाने वाले  की  कुशलता तथा सम्पूर्ण 
सहयोग पर अपना ढृढ़ विश्वास रहता है | परन्तु 
स्वयं अपने पर ही सब जिम्मेदारी लेकर , अपनी 
ही कार में अकेला बैठकरपूरा बोझ  उठाया तो थकावट
आने लगती  है और बार-बार सोचता है कि कोई कुशल
साथी होता तो कितना अच्छा होता |"

रविवार, जुलाई 24, 2011

हे दुर्गे माँ

 हे दुर्गे माँ , 
मेरे लिए इतना ही बहुत है की मैं आपका हूँ.
और मेरे गर्व के लिए इतना ही बहुत है की आप मेरी माँ हैं.
आप बिलकुल वैसी हैं जैसा की मै चाहता हूँ. 
और मुझे...वैसा बना दें जैसा आप चाहती हैं.. 
         जय माता दी जी ♥ ♥

शनिवार, जुलाई 23, 2011

भगवान पर भरोसा हर-हाल में रखना.........

लक्ष्मी पूजा के काबिल तो है ,लेकिन भरोसे  के काबिल कत्तई नहीं है.
लक्ष्मी की पूजा तो करना मगर लक्ष्मी पर भरोसा मत करना और भगवान
की पूजा भले ही मत करना लेकिन भगवान पर भरोसा हर-हाल में रखना .
दुनिया में भरोसे के काबिल सिर्फ भगवान ही हैं लक्ष्मी का क्या भरोसा ?
वह तो चंचला है,आज यहाँ और कल वहाँ जिस-जिस ने भी इस पर भरोसा किया आखिर में वह रोया है .

शुक्रवार, जुलाई 22, 2011

आप आकर मेरे गाँव की हालत देखो........

 यूँ ना अखबार में पढ़ कर के इबारत देखो
आप आकर मेरे गाँव की हालत देखो
व्यर्थ जायेगी शहादत वतन परस्तों की
भूख से मरते है जो उनकी शहादत देखो
यहाँ तरसते है बच्चे भी खेलने के लिए
शहर में बाँट दी, कुछ लोंगो ने दहशत देखो
उजाड़े गाँव और आबाद शहर कर डाले
आप पर्यावरण से उनकी मोहब्बत देखो
छिपेगी अब न हकीकत दिखा के झूठे सब्ज़-बाग
उनकी चालाकियाँ और उनकी तिजारत देखो
जब भी दिल होता है बैचैन बहुत ऐसे में
जी में आता किसी बच्चे की शरारत देखो

कल कुछ नहीं कर पावोगे...............

बुजुर्गों की संगति करो,क्योंकि बुजुर्गों के चेहरे की एक -एक झुर्री पर हजार -हजार अनुभव लिखे होते हैं .
उनके कांपते हुए हाथ ,हिलती हुई गर्दन,लड़खड़ाते हुए कदम और मुरझाया हुआ चेहरा सन्देश देता है,
कि जो भी शुभ करना है ,वह आज ,अभी इसी वक्त कर लो .कल कुछ नहीं कर पावोगे .बुढा इन्सान इस 
पृथ्वी का सबसे बड़ा शिक्षालय है,क्योंकि उसे देखकर उगते सूरज क़ी डूबती कहानी का बोध होता है .

गुरुवार, जुलाई 21, 2011

तू आप ही अपना मांझी बन..............

दुश्मनी जमकर करो ,
लेकिन गुंजाईश रहे ,
की जब हम दोस्त हो जाये ,
तो कभी शर्मिंदा न होना पड़े,
कौन कहता है कि मौत आयी तो मर जाऊंगा ,
मैं तो दरिया हूँ ,समुन्दर में उतर जाऊंगा.....
तू आप ही अपना मांझी बन ,
मौजों (लहरों ) के सहारे बहना क्या .......?

रविवार, जुलाई 03, 2011

Jra soche - Dr.sunil kumar

Jra soche - Dr.sunil कुमार

आज कुछ लेख नहीं बस यह तस्वीर को ही एक लेख समझे और इसके आगे पीछे..... भविष्य के सभी पहलुओं पर विचार करें. मित्रो को भेजे ........