बुधवार, अगस्त 17, 2011

कड़वे बोल लेकिन सत्य ......

!! अपना-अपना करो सुधार , तभी मिटेगा भ्रष्टाचार.. !!
सार्वजनिक जीवन में स्वीकृत मूल्यों के विरुद्ध आचरण को भ्रष्ट आचरण समझा जाता है... आखिर यह भ्रष्टाचार क्या है? इस आन्दोलन में डाक्टर,इंजिनियर ,वकील,पत्रकार,छुटपुट नेता, पढ़े लिखे बेरोजगार नवयुवक शामिल होकर प्रतिशोध केवल सरकार के विरुद्ध कर रहे हैं और ऐसा प्रतीत होता है जैसे केवल सरकार ही भ्रष्ट है और बाकी सारे ईमानदार.. सरकार और सरकारी तंत्र से जुड़े बहुत से व्यक्ति तो निश्चित रूप से भ्रष्ट पाए गए है परन्तु इस जन आन्दोलन में शामिल होने वाले कितने ऐसे हैं जिनमे भ्रष्टाचार समाहित नहीं ?. क्या रिटेल मेडिकल स्टोर वाले बिना फार्मेसिस्ट के दवा नहीं बेच रहे हैं ? क्या किराना स्टोर वाले नकली व मिलावटी सामान नहीं बेच रहे हैं ? क्या दूध और दूध से निर्मित खाद्य पदार्थ बेचने वाले मिलावट नहीं कर रहे है ? क्या प्राईवेट डाक्टर जनता को लूट नहीं रहे हैं ? क्या वकील अपने मुवक्किल को चूस नहीं रहे हैं ? क्या धर्म की आड़ में रंग बिरंगे कपड़े पहनकर कई बाबा जी अपना व्यवसाय नहीं चला रहे हैं? क्या प्राईवेट क्षेत्र में तकनीकी शिक्षा बेचने वाले छात्रों को धोखा नहीं दे रहे हैं ? क्या मीडिया के सभी लोग ईमानदार है? प्राईवेट स्तर पर ट्यूशन का काम करने वाले मास्टर क्या अपने छात्रों को धोखा नहीं दे रहे हैं? क्या पेट्रोल बेचने पम्प मालिक डीजल पेट्रोल में मिलावट नहीं कर रहे हैं ? कितने ऐसे हैं जिन्होंने अपने बच्चों की शादी में दहेज़ लिया दिया ना हो ? अंततः सारे देश में ऐसे अनेक भ्रष्ट आचरण में लिप्त लोग पाए जाते हैं. ..इन सबसे भ्रष्टाचार कौन मिटाएगा.. ? दूसरों की गणना दोषी के रूप में करना सरल है. बहुत सरल उपदेश सुनना किन्तु कठिन करके दिखलाना ...वास्तविक पुरुषार्थ है --अपना-अपना करो सुधार , तभी मिटेगा भ्रष्टाचार..

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