हमारे
चित्त की स्थिति हम जैसी बनाए रखेंगे, यह दुनिया भी ठीक वैसी बन जाती है। न
मालूम कौन-सा चमत्कार है कि जो आदमी भला होना शुरू होता है, यह सारी
दुनिया उसे एक भली दुनिया में परिवर्तित हो जाती है। और जो आदमी प्रेम से
भरता है, इस सारी दुनिया का प्रेम उसकी तरफ प्रवाहित होने लगता है। और यह
नियम इतना शाश्वत है कि जो आदमी घृणा से भरेगा, प्रतिकार में घृणा उसे
उपलब्ध होने लगेगी। हम जो अपने चारों तरफ फेंकते हैं, वही हमें उपलब्ध हो
जाता है। इसके सिवाय कोई रास्ता भी नहीं है।
तो चौबीस घंटे उन
क्षणों का स्मरण करें, जो जीवन में अदभुत थे, ईश्वरीय थे। वे छोटे-छोटे
क्षण, उनका स्मरण करें और उन क्षणों पर अपने जीवन को खड़ा करें। और उन
बड़ी-बड़ी घटनाओं को भी भूल जाएं, जो दुख की हैं, पीड़ा की हैं, घृणा की हैं,
हिंसा की हैं। उनका कोई मूल्य नहीं है। उन्हें विसर्जित कर दें, उन्हें झड़ा
दें। जैसे सूखे पत्ते दरख्तों से गिर जाते हैं, वैसे जो व्यर्थ है, उसे
छोड़ते चले जाएं; और जो सार्थक है और जीवंत है, उसे स्मरणपूर्वक पकड़ते चले
जाएं। चौबीस घंटे इसका सातत्य रहे। एक धारा मन में बहती रहे शुभ की,
सौंदर्य की, प्रेम की, आनंद की।
तो आप क्रमशः पाएंगे कि जिसका आप
स्मरण कर रहे हैं, वे घटनाएं बढ़नी शुरू हो गयी हैं। और जिसको आप निरंतर साध
रहे हैं, उसके चारों तरफ दर्शन होने शुरू हो जाएंगे। और तब यही दुनिया
बहुत दूसरे ढंग की दिखायी पड़ती है। और तब ये ही लोग बहुत दूसरे लोग हो जाते
हैं। और ये ही आंखें और ये ही फूल और ये ही पत्थर एक नए अर्थ को ले लेते
हैं, जो हमने कभी पहले जाना नहीं था। क्योंकि हम कुछ और बातों में उलझे हुए
थे। तो मैंने जो कहा, ध्यान में जो अनुभव हो--थोड़ा-सा भी प्रकाश,
थोड़ी-सी भी किरणें, थोड़ी-सी भी शांति--उसे स्मरण रखें। जैसे एक छोटे-से
बच्चे को उसकी मां सम्हालती है, वैसे जो भी छोटी-छोटी अनुभूतियां हों,
उन्हें सम्हालें। उन्हें अगर नहीं सम्हालेंगे, वे मर जाएंगी। और जो जितनी
मूल्यवान चीज होती है, उसे उतना सम्हालना होता है।जानवरों के भी
बच्चे होते हैं, उनको सम्हालना नहीं होता। और जितने कम विकसित जानवर हैं,
उनके बच्चों को उतना ही नहीं सम्हालना होता, वे अपने आप सम्हल जाते हैं।
जैसे-जैसे विकास की सीढ़ी आगे बढ़ती है, वैसे-वैसे आप पाते हैं--अगर मनुष्य
के बच्चे को न सम्हाला जाए, वह जी ही नहीं सकता। मनुष्य के बच्चे को न
सम्हाला जाए, वह जी नहीं सकता। उसके प्राण समाप्त हो जाएंगे। जो जितनी
श्रेष्ठ स्थिति है जीवन की, उसे उतने ही सम्हालने की जरूरत पड़ती है। तो
जीवन में भी जो अनुभूतियां मूल्यवान हैं, उनको उतना ही सम्हालना होता है।
उतने ही प्रेम से उनको सम्हालना होता है। तो छोटे-से भी अनुभव हों, उन्हें
सम्हालें; वैसे ही जैसे...। आपने पूछा, कैसे सम्हालें? अगर मैं आपको कुछ
हीरे दे दूं, तो आप उन्हें कैसे सम्हालेंगे? अगर आपको कोई बहुमूल्य खजाना
मिल जाए, उसे आप कैसे सम्हालेंगे? उसे आप कैसे सम्हालेंगे? उसे आप कहां
रखेंगे? उसे आप छिपाकर रखना चाहेंगे; उसे अपने हृदय के करीब रखना
चाहेंगे।..........ओशो
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