रविवार, सितंबर 11, 2011

माया क्या है ...................





















शरीर सुख के लिए अन्य मूल्यवान पदार्थों को खर्च
कर देते हैं कारण यही है कि वे मूल्यवान पदार्थ शरीर
सुख के मुकाबले में कमतर जँचते हैं। लोग शरीर 
सुख की आराधना में लगे हुए हैं परन्तु एक बात 
भूल जाते हैं कि शरीर से भी ऊँची कोई वस्तु है ।
वस्तुत: आत्मा शरीर से ऊँची है। आत्मा के आनन्द
के लिए शरीर या उसे प्राप्त होने वाले सभी सुख तुच्छ हैं।
अपने दैनिक जीवन में पग- पग पर मनुष्य 'बहुत के 
लिये थोड़े का त्याग' की नीति को अपनाता है, परन्तु 
अन्तिम स्थान पर आकर यह सारी चौकड़ी भूल जाता है। 
जैसे शरीर सुख के लिए पैसे का त्याग किया जाता है वैसे
ही आत्म - सुख के लिए शरीर सुख का त्याग करने में
लोग हिचकिचाते हैं, यही माया है। पाठक इस बात को
भली भाँति जानते हैं कि अन्याय, अनीति, स्वार्थ, 
अत्याचार, व्यभिचार, चोरी, हिंसा, छल, दम्भ, पाखण्ड,
असत्य, अहंकार, आदि से कोई व्यक्ति धन इकट्ठा कर
सकता है, भोग पदार्थों का संचय कर सकता है, इन्द्रियों 
को कुछ क्षणों तक गुदगुदा सकता है, परन्तु आत्म-सन्तोष
प्राप्त नहीं कर सकता।

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