कहा जाता है कि खोपड़ी में मनुष्य का भाग्य लिखा रहता है।
इस भाग्य को ही
कर्म लेख भी कहते हैं । मस्तिष्क में रहने
वाले विचार ही जीवन का स्वरूप
निर्धारित करने और
सम्भावनाओं का ताना-बाना बुनते हैं । इसलिए प्रकारान्तर
से भी यह बात सही है कि भाग्य का लेखा-जोखा कपाल में
लिखा रहता है । कपाल
अर्थात् मस्तिष्क । मस्तिष्क अर्थात्
विचार । अत: मानस शास्त्रप के
आचार्यों ने उचित ही संकेत
किया है कि भाग्य का आधार हमारी विचार पद्धति ही
हो सकती है ।
विचारों की प्रेरणा और दिशा अपने अनुरूप कर्म करा लेती है ।
विचारों की प्रेरणा और दिशा अपने अनुरूप कर्म करा लेती है ।
इसलिए भाग्य का लेखा-जोखा कपाल में लिखा रहता है,
जैसी भाषा का प्रयोग
पुरातन ग्रंथ से करते हुए भी तथ्य यही
प्रकट होता है कि कर्तृत्व अनायास ही
नहीं बन पड़ता, उसकी
पृष्ठभूमि विचार शैली के अनुसार धीरे-धीरे मुद्दतों
में बन पाती है ।
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