Online Treatment For Chronic & Incurable Disease Through:- Advanced Homoeopathy, Naturopathy, Acupressure, Yoga, Herbal & Reiki.....
बुधवार, नवंबर 23, 2011
दर्शन तेरा.......................
दर्शन तेरा जिस दिन पाऊँ, हर चिन्ता मिट जाये ,
जीवन मेरा इन चरणों में, आस की ज्योत जगाये,
ओ,ओ रे मुरली धर मेरी बाँहें पकड़ लो श्याम रे ,,
मेरी बांह पकड़ लो तुम ,
चले आओ कान्हा ,
की मैं तो चलना,
न .जानू,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
मैं तो नश्वर ,
मूर्ख ..नट खट रानी,
चले आओ कान्हा आ के ,
दर्शन दिखाओ न,
ओ मुरली धर मेरी बांह पकड़ लो तुम ...........
.,,,,,,,,,,,,,जय श्री राधे क़ृष्ण,,,,,,,,,,,,,,
रविवार, नवंबर 20, 2011
नूर का चरण स्पर्श........
चाँद भी हैरान है, देख धरती पे ऐसा नूर............
सूरज का घमंड भी, हो गया चूर-चूर................
तारे जिससे मिलने को हो गए मजबूर..............
लज्जित होकर हर पुष्प, झुक,गया जब पाया ऐसा नूर..............
फटा कलेजा अंबर का, जब पाया खुद से दूर..................
धरती पावन हो गई पल में, चूमे चरण भरपूर.................
चलती पवन भी झूम गई, नज़र में आया जब वो हूर.................
गंगा ने भी चरण पखारे, न रह पायी दूर...................
ढूँढ सका न कोई, माता रानी तुम सा नूर.....................
नमन तुझे ऐ माता रानी, तू जगत की नूर..............
नूर के चरण स्पर्श मात्र से दर्द हो जाता है दूर..........
जय माता दी जपते रहो,सुबह शाम भरपूर.....
जय माता दी जपते रहो,सुबह शाम भरपूर.....
जय माता दी!!!जय माता दी!!!जय माता दी!!!
शनिवार, नवंबर 19, 2011
खाने से जुड़ी बस इस एक आदत को सुधार ले, वजन कम होने लगेगा......
अधिकतर लोग जो मोटापा बढऩे से परेशान
रहते हैं। वे मोटापा कम करने के लिए अपनी दिनचर्या को बंदिशो से बांध लेते
हैं। मोटापा घटाने के लिए वे सिर्फ अपने आहार पर ध्यान देते हैं। लेकिन
मोटापा घटाने के लिए सिर्फ आहार पर ध्यान देने से काम नहीं चलता बल्कि
मोटापा घटाने के लिए अपने आहार पर तो हम सभी ध्यान देते हैं, लेकिन आहार के
सेवन का क्या तरीका है, यह बात अधिक महत्व रखती है।
कहा जाता है खाना हमेशा धीरे-धीरे और चबाकर खाना चाहिए। खाने के हर एक कोर को कम से कम ३२ बार चबाना चाहिए। लेकिन बहुत कम लोग ऐसे होते हैं जो खाना खाते समय पूरा ध्यान खाने पर रखते हैं और पूरी तरह चबाकर खाना खाते हैं। विशेषकर महिलाओं में ये आदत ज्यादा देखी जाती है कि वे अपने काम में बिजी होने के कारण या घर और बाहर के काम के अधिक बोझ के चलते अपने खाने-पीने की आदतों को लेकर अधिक लापरवाह होती है हालांकि ये आदतें पुरुषों में भी होती हैं।
कहा जाता है खाना हमेशा धीरे-धीरे और चबाकर खाना चाहिए। खाने के हर एक कोर को कम से कम ३२ बार चबाना चाहिए। लेकिन बहुत कम लोग ऐसे होते हैं जो खाना खाते समय पूरा ध्यान खाने पर रखते हैं और पूरी तरह चबाकर खाना खाते हैं। विशेषकर महिलाओं में ये आदत ज्यादा देखी जाती है कि वे अपने काम में बिजी होने के कारण या घर और बाहर के काम के अधिक बोझ के चलते अपने खाने-पीने की आदतों को लेकर अधिक लापरवाह होती है हालांकि ये आदतें पुरुषों में भी होती हैं।
लेकिन
ये बहुत कम लोग जानते हैं कि खाने में जल्दबाजी करने से सिर्फ कब्ज
एसीडिटी और अपच की शिकायत ही नहीं होती बल्कि तेजी से भोजन करना आपको
ओवरवेट भी बना सकता है।जी हां सुनने में भले ही थोड़ा अजीब लगे लेकिन अगर
आप खाने को देखते ही उस पर टूट पड़ते हैं और तेजी से उसे चबाने पर ध्यान न
देते हुए खाने लगते हैं तो आप चाहे कितनी ही डाइटिंग कर ले दुबले नहीं हो
सकते हैं। वाशिंगटन में किए गए एक शोध के अनुसार जो कि हेल्थ एजुकेशन एंड
बिहेवियर जर्नल में प्रकाशित हुआ जल्दबाजी में खाना खाने से या भोजन की
प्रति अधिक सर्तकता रखने से भी अधिक तेजी से वजन बढऩे लगता है।
मंगलवार, नवंबर 15, 2011
अनोखा प्राणायाम: ये होता है आधी रात में, मिलती है जादूई ताकत....
आमतौर पर आपने सुना होगा कि प्राणायाम सुबह जल्दी उठ कर किया जाना चाहिए लेकिन हम आपको ऐसे प्राणायाम के बारे में बता रहे हैं जो आधी रात में करना चाहिए।
ये पढ़ कर आपको आश्चर्य
तो होगा कि क्या ये सच है? जी हां ये सच है। हम आपको रात में होने वाले
ऐसे प्राणायाम के बारें में बता रहे हैं जिससे आपको आसानी से जादूई ताकत
मिल सकती है और आपको भविष्य में होने वाली घटनाओं के बारे में पहले से ही
पता चल जाएगा। योगसूत्रों के अनुसार प्राणायाम मन को शांत रखने का
सर्वश्रेष्ठ उपाय है। साथ ही इससे किसी भी कार्य को करने की एकाग्रता बढ़ती
है।
भ्रामरी प्राणायाम एक ऐसा प्राणायाम है जिसे आप सिर्फ रात को
ही कर सकते हैं। इसके रोजाना करने से दिमाग में ऐसे न्यूरोंस एक्टीव हो
जाते हैं जिससे आपको भविष्य में होने वाली अच्छी और बुरी घटनाओं का पहले ही पता चल जाता है।
कैसे करें ये चमत्कारी प्राणायाम .....
योगियों
के अनुसार यह प्राणायाम रात्रि के समय किया जाना चाहिए। जब आधी रात बीत
जाए और किसी भी जीव-जंतु की कोई आवाज सुनाई ना दे। उस समय किसी भी
सुविधाजनक आसन में बैठकर तीन उंगुली से आँख बंद करना अगूंठा से कान बंद करना तथा पहली उंगली को कपाल पर जहाँ चन्दन करते है उसके अगल-बगल रखकर,ॐ का नाद मुंह बंद करके भंवरे की गुंजन की तरह करना ............
क्या चमत्कार होता है इस प्राणायाम से ..........
योगियों
के अनुसार इस आसन से मन की चंचलता आपका दिमाग भटकता बंद हो जाता है। सिर
के बीच में होने वाले सहस्त्रार चक्र पर कंपन होती है। इससे भविष्य में
होने वाली घटनाओं का आसानी से पता चल जाता है। अगर कुछ अच्छा या बुरा होने
वाला है तो पहले ही पता चल जाता है। लगातार ये प्राणायाम करने से तनाव और अनिद्रा दूर
होता है और दैवीय शक्ति मिलती है।
शनिवार, नवंबर 12, 2011
सफलता की राह पर आने वाली कुछ बाधाये.....
{1} Ego
{2} Fear of failure / success: lack of self-esteem
{3} Lack of formalised goals
{4} Life changes
{5} Procrastination
{6} Family responsibilities
{7} Financial security issues
{8} Lack of focus ,being muddled
{9} Giving up vision for promise of money
{10} Doing to much alone
{11} Overcommitment
{12} Lack of commitment
{13} Lack of trining
{14} Lack of persistence
{15} Lack of priorities
शनिवार, नवंबर 05, 2011
विज्ञान की तुला पर मांसाहार..........
मांसाहार के कारण पर्यावरण संदूषित एवं असंतुलित हो रहा है.
वन मरुस्थल में
बदल रहे हैं. जलस्रोत सूखते जा रहे हैं, अथवा
यूं कहिये काफी हद तक नीचे
उतारते जा रहे हैं. पृथ्वी अपनी
उर्वरक-शक्ति खोती जा रही है. आकाश धरती
एवं समुद्र मांसाहार
के उत्पादन तथा रासायनिक विषों से प्रदूषित हो रहे
हैं. चारों ओर
प्रदूषण मौत का रूप धारण कर मंडरा रहा है, जिसके दुष्प्रभाव
से
आम आदमी की जीवन-शक्ति एवं आरोग्य, पल-पल क्षीण होता जा
रहा है और
मनुष्य स्वयं को एवं आगामी पीढ़ी को आँखे मूंदकर
बेरहमी से जमीन पर अच्छी
तरह पैर टिकाने से पूर्व ही विनाश
के महागर्त में ढकेल रहा है. "
मांसाहार से प्राप्त प्रोटीन समस्या ही नहीं समस्याओं की कतार कड़ी कर देता है, जिनमें से गंभीर समस्या है - गुर्दे में पथरी और आवश्यकता से अधिक प्रोटीन, जो न केवल कैल्शियम के संचित कोष को खाली करता है, अपितु किडनी से बेवजह अधिक श्रम लेकर, उसे बुरी तरह क्षतिग्रस्त करता है.
मांसाहार कब्ज का जनक है, कारण वह फाइबर रहित होने से आँतों की सफाई करने में असमर्थ है; उलटे वह सड़ांध पैदा करता है. जिन पशु-पक्षियों से मांस उत्पादित किया जाता है, उन बीमार पशुओं के रोग मुफ्त में मांसाहारी के पेट में उतर जाते हैं.
मांसाहार से प्राप्त प्रोटीन समस्या ही नहीं समस्याओं की कतार कड़ी कर देता है, जिनमें से गंभीर समस्या है - गुर्दे में पथरी और आवश्यकता से अधिक प्रोटीन, जो न केवल कैल्शियम के संचित कोष को खाली करता है, अपितु किडनी से बेवजह अधिक श्रम लेकर, उसे बुरी तरह क्षतिग्रस्त करता है.
मांसाहार कब्ज का जनक है, कारण वह फाइबर रहित होने से आँतों की सफाई करने में असमर्थ है; उलटे वह सड़ांध पैदा करता है. जिन पशु-पक्षियों से मांस उत्पादित किया जाता है, उन बीमार पशुओं के रोग मुफ्त में मांसाहारी के पेट में उतर जाते हैं.
मंगलवार, नवंबर 01, 2011
मॉंस मनुष्यता को त्याग कर ही खाया जा सकता है........
करुणा की प्रवृत्ति अविछिन्न है । उसे मनुष्य और पशुओं के बीच विभाजित नहीं किया जा सकता । पशु-पक्षियों के प्रति बरती जाने वाली निर्दयता मनुष्यों के साथ किये जाने वाले व्यवहार को भी प्रभावित करेगी । जो मनुष्यों से प्रेम और सद्व्यवहार का मर्म समझता है वह पशु-पक्षियों के प्रति निर्दय नहीं हो सकता । भारत यात्रा करने वाले सुप्रसिद्ध फाह्यान, मार्कोपोलो सरीखे विदेशी यात्रियों ने अपनी भारत यात्राओं के विशद् वर्णनों में यही लिखा है - भारत में चाण्डालों के अतिरिक्त और कोई सभ्य व्यक्ति माँस नहीं खाता था । धार्मिक दृष्टि से तो इसे सदा निन्दनीय पाप कर्म बताया जाता रहा है । बौद्ध और जैन धर्म तो प्रधानतया अहिंसा पर ही आधारित है । वैष्णव धर्म भी इस सम्बन्ध में इतना ही सतर्क है । वेद, पुराण, स्मृति, सूत्र आदि हिन्दू धर्म-ग्रंथों में पग-पग पर मॉंसाहार की निन्दा और निषेध भरा पड़ा है । बाइबिल में कहा गया है - ऐ देखने वाले देखता क्यों है, इन काटे जाने वाले जानवरों के विरोध में अपनी जुबान खोल । ईसा कहते थे -किसी को मत मार । प्राणियों की हत्या न कर और मॉंस न खा । कुरान में लिखा है - हरा पेड़ काटने वाले, मनुष्य बेचने वाले, जानवरों को मारने वाले और पर स्त्रीगामी को खुदा माफ नहीं करता । जो दूसरों पर रहम करेगा, वही खुदा की रहमत पायेगा । हमें बढ़ते हुए मॉंसाहार की प्रवृति में होने वाली हानियों पर विचार करना चाहिए और अपनी मूल प्रकृति एवं प्रवृत्ति के अनुकूल आचरण करना चाहिए ताकि शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य नष्ट होने से बच सके । निष्ठुरता और क्रूरता का दूसरा नाम ही माँसाहार है । अच्छा हो हम अपनी प्रकृति में से इन तत्त्वों को निकाले अन्यथा हमारा व्यवहार मनुष्यों के प्रति भी इन्हीं दुर्गुणों से भरा होगा और संसार में नरक के दृश्य दीखेंगे ।
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