शनिवार, नवंबर 05, 2011

विज्ञान की तुला पर मांसाहार..........




















मांसाहार के कारण पर्यावरण संदूषित एवं असंतुलित हो रहा है. 
वन मरुस्थल में बदल रहे हैं.  जलस्रोत सूखते जा रहे हैं, अथवा
यूं कहिये काफी हद तक नीचे उतारते जा रहे हैं. पृथ्वी अपनी 
उर्वरक-शक्ति खोती जा रही है. आकाश धरती एवं समुद्र मांसाहार 
के उत्पादन तथा रासायनिक विषों से प्रदूषित हो रहे हैं. चारों ओर
प्रदूषण मौत का रूप धारण कर मंडरा रहा है, जिसके दुष्प्रभाव से 
आम आदमी की जीवन-शक्ति एवं आरोग्य, पल-पल क्षीण होता जा 
रहा है और मनुष्य स्वयं को एवं आगामी पीढ़ी को आँखे मूंदकर
बेरहमी से जमीन पर अच्छी तरह पैर टिकाने से पूर्व ही विनाश 
के महागर्त में ढकेल रहा है. "
मांसाहार से प्राप्त प्रोटीन समस्या ही नहीं समस्याओं की कतार कड़ी कर देता है, जिनमें से गंभीर समस्या है - गुर्दे में पथरी और आवश्यकता से अधिक प्रोटीन, जो न केवल कैल्शियम के संचित कोष को खाली करता है, अपितु किडनी से बेवजह अधिक श्रम लेकर, उसे बुरी तरह क्षतिग्रस्त करता है.
                   मांसाहार कब्ज का जनक है, कारण वह फाइबर रहित होने से आँतों की सफाई करने में असमर्थ है; उलटे वह सड़ांध पैदा करता है. जिन पशु-पक्षियों से मांस उत्पादित किया जाता है, उन बीमार पशुओं के रोग मुफ्त में मांसाहारी के पेट में उतर जाते हैं.

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