मंगलवार, दिसंबर 20, 2011

प्रार्थना से सिद्धि..............

























अनेक बार  ऐसा देखा गया है कि सच्चे हृदय से भगवान् की प्रार्थना करने सेअपना इच्छित मनोरथ पूरा कर देने की प्रभु से याचना करने से, वह कार्य पूरा हो जाता है। इस प्रार्थना से सिद्धि मिलने का एक आध्यात्मिक रहस्य है- वह यह है कि प्रार्थना करने वाले को यह विश्वास रहता है कि (१) परमात्मा ऐसा शक्तिशाली है कि वह चाहे तो आसानी से मेरी इच्छा को पूरा कर सकता है। (२)परमात्मा दयालु है। उसके स्वभाव को  देखते हुए यह आशा की जा सकती है कि मेरे कार्य को पूरा कर देगा। (३) मेरी माँग उचित, आवश्यक और न्याय संगत है, इसलिए परमात्मा की कृपा  मुझे प्राप्त होगी। (४) अपने अन्त:करण का श्रेष्ठतम भाग श्रद्धा, विश्वास परमात्मा पर आरोपण करते हुए सच्चे हृदय से प्रार्थना कर रहा हूँ। इसलिए मेरी पुकार सुनी जायेगी। इन चारों तथ्यों के मिलने से याचक की आकांक्षा प्रबल हो उठती है और उसके पूरे होने का बहुत हद तक उसे विश्वास हो जाता है। आशा की किरणों का प्रकाश उसके अन्त:करण में बढ़ जाता है। ऐसे मानसिक स्थिति का होना सफलता की एक पूर्व भूमिका है। तरीका चाहे कोई भी हो, पर मनुष्य यदि अपनी मानसिक स्थिति ऐसी बना ले कि मेरा मनोरथ सफल होने की पूरी आशा, पूरी संभावना है। तो अधिकांश में उनके मनोरथ पूरे हो जाते हैं; क्योंकि आशा और सम्भावनामयी मनोदशा के कारण शारीरिक और मानसिक शक्तियाँ असाधारण रूप से जाग उठती हैं और उत्तमोत्तम उपाय सूझ पड़ते हैं। मार्ग निकलते हैं, एवं सहयोग प्राप्त होते हैं, जिनके कारण सफलता का मार्ग बहुत आसान हो जाता है और प्राय: वह प्राप्त भी हो जाती है।


सोमवार, दिसंबर 19, 2011

माँ तुम बिलकुल माँ जैसी हो..............













 
तुम्ही मिटाओ मेरी उलझन
कैसे कहूँ कि तुम कैसी हो
कोई नहीं सृष्टि में तुम-सा
माँ तुम बिलकुल माँ जैसी हो।
ब्रह्मा तो केवल रचता है
तुम तो पालन भी करती हो
शिव हरते तो सब हर लेते
तुम चुन-चुन पीड़ा हरती हो
किसे सामने खड़ा करूँ मैं
और कहूँ फिर तुम ऐसी हो।
माँ तुम बिलकुल माँ जैसी हो।।

ज्ञानी बुद्ध प्रेम बिना सूखे
सारे देव भक्ति के भूखे
लगते हैं तेरी तुलना में
ममता बिन सब रुखे-रुखे
पूजा करे सताए कोई
सब के लिए एक जैसी हो।
माँ तुम बिलकुल माँ जैसी हो।।

कितनी गहरी है अदभुत-सी
तेरी यह करुणा की गागर
जाने क्यों छोटा लगता है
तेरे आगे करुणा-सागर
जाकी रही भावना जैसी
मूरत देखी तिन्ह तैसी हो।
माँ तुम बिलकुल माँ जैसै हो।।

मेरी लघु आकुलता से ही
कितनी व्याकुल हो जाती हो
मुझे तृप्त करने के सुख में
तुम भूखी ही सो जाती हो।
सब जग बदला मैं भी बदला
तुम तो वैसी की वैसी हो।
माँ तुम बिलकुल माँ जैसी हो।।

तुम से तन मन जीवन पाया
तुमने ही चलना सिखलाया
पर देखो मेरी कृतघ्नता
काम तुम्हारे कभी न आया
क्यों करती हो क्षमा हमेशा
तुम भी तो जाने कैसी हो।
माँ तुम बिलकुल माँ जैसी हो।।

शनिवार, दिसंबर 17, 2011

आज तो निश्चित अडिग संकल्प ले लो............



















करो ऐसा कि लोग तुम्हे पागल समझे.... और जब उसका परिणाम सामने आये तो तुम लोगो को पागल समझो..................
 
जब जीत निश्चित हो तो हर कोई लड़ सकता हैं...............                मुझे तो कोई ऐसा व्यक्ति दिखाओ जो हार निश्चित होने पर भी लड़ने का साहस रखता हो....
 
जिंदगी तो अपने दम पर ही जी जाती हैं................. औरो के कंधो पर सिर्फ जनाजे उठा करते हैं:- भगत सिंह

गुरुवार, दिसंबर 15, 2011

स्वामी रामकृष्ण परमहंस जी कहा करते थे..............


















 
!! स्वामी रामकृष्ण परमहंस जी कहा करते थे - दो प्रकार की मक्खियाँ होती है ! एक तो शहद की मक्खियाँ, जो शहद के अतिरिक्त और कुछ भी  नहीं खाती और दूसरी साधारण मक्खियाँ , जो शहद पर भी जा बैठती हैं और यदि सड़ता हुवा घाव दिखलाई पड़े तो तुरंत शहद को छोड़कर उस पर भी जा बैठती हैं ! इसी प्रकार इस संसार में दो तरह के स्वभाव के लोग होते हैं एक जो ईश्वर में अनुराग रखते है, वे ईश्वर की चर्चा के सिवाय कोई दूसरी बात करते ही नहीं और दूसरे जो संसार मे आसक्त जीव हैं, वे ईश्वर की बात सुनते-सुनते यदि किसी स्थान पर विषय की बातें होती हों तो तुरन्त भगवान की चर्चा छोड़कर उसी में संलग्न हो जाते है ! पतन एक सहज गति क्रम है, उठना पराक्रम है ! अचेतन की पाशविक प्रवृत्तियां बार-बार मनुष्य को घसीट कर विषयी बनने की ओर प्रवृत्त करती हैं ! यह मनुष्य पर निर्भर है कि वह इन पर किस प्रकार अंकुश लगा पाता है व प्राप्त सामर्थ्य का सदुपयोग कर पाता है !!










बुधवार, दिसंबर 14, 2011

इस्लाम जगत में कुर्बानी के विरोध में क्रान्ति.............




















" इस्लाम जगत में कुर्बानी के विरोध में क्रान्ति" ( वर्ष १९९७ संस्करण )" वर्तमान में इस्लाम जगत के जाने माने लेखक, वरिष्ठ पत्रकार पाकिस्तानी-निवासी श्री मसूद अहमद ने अपने लेख में लिखा है कि ईद पर होने वाली लाखों पशुओं की कुर्बानी जिससे पर्यावरण बुरी तरह से प्रभावित हो रहा है, रोकी जाए; यहाँ तक कि वहाँ के मजहबों मंत्री मौलाना अब्दुल सत्तार ने जनता से अपील करते हुए कहा है कि हज़रत मोहम्मद के दो सम्मान योग्य सहकारियों हज़रत अबुकर और हज़रत उम्र ने अपने तमाम जीवन में ईद के दिन एक भी पशु कुर्बान नहीं किया .... हज़रत मोहम्मद के एक और महत्वपूर्ण सहयोगी हज़रत अबू मसअद अंसारी बहुत बड़े व्यापारी थे. हजारों भेड़ों के मालिक थे, परन्तु उन्होंने कभी किसी जानवर को कुर्बान नहीं किया. हज़रत उमर ने अह करते हुए एक भी पशु की कुर्बानी नहीं दी. मराकों में इस्लामी-प्रणाली लागू है; वहाँ के शासक को अमीरुल मोमनीन कहा जाता है. जिन्होंने बारह वर्ष पूर्व ईद के अवसर पर विचार व्यक्त करते हुए कहा कि हर वर्ष तीस लाख पशुओं को कुर्बान किया जाता है, जिनकी कीमत २० करोड़ डालर है. इस प्रथा को रोक दिया जाए. वहाँ के उलमा ने शासक का साथ दिया और कुर्बानी रोक दी गयी. वैसे कुरान में भी साफ़ लिखा है कि अल्लाह खून और गोश्त पसंद नहीं करता, उस तक तो सिर्फ भावना ही पहुँचती है." - प.पू. देवी माँ (श्रीमती कुसुम अस्थाना)


बुधवार, दिसंबर 07, 2011

सम्पत्ति ही नहीं सदबुद्धि भी............

























सुख-सुविधा की साधन-सामग्री बढ़ाकर संसार में सुख-शान्ति और प्रगति होने की बात सोची जा रही है और उसी के लिए सब कुछ किया जा रहा है पर साथ ही हमें यह भी सोच लेना चाहिए कि समृद्धि तभी उपयोगी हो सकती है जब उसके साथ-साथ भावनात्मक स्तर भी ऊँचा उठता चले, यदि भावनाएँ निकृष्ट स्तर की रहें तो बढ़ी हुई सम्पत्ति उलटी विपत्ति का रूप धारण कर लेती है । दुर्बुद्धिग्रस्त मनुष्य अधिक धन पाकर उसका उपयोग अपने दोष-दुर्गुण बढ़ाने में ही करते हैं । अन्न का दुर्भिक्ष पड़ जाने पर लोग पत्ते और छालें खाकर जीवित रह लेते हैं पर भावनाओं का दुर्भिक्ष पडऩे पर यहॉँ नारकीय व्यथा-वेदनाओं के अतिरिक्त और कुछ शेष नहीं रहता ।

सम्पन्न लोगों का जीवन निर्धनों की अपेक्षा कलुषित होता है, उसके विपरीत प्राचीनकाल में ऋषियों ने अपने जीवन का उदाहरण प्रस्तुत करके यह सिद्ध किया था कि गरीबी की जीवन व्यवस्था में भी उत्कृष्ट जीवन जीना संभव हो सकता है । यहाँ सम्पन्नता एवं समृद्धि का विरोध नहीं किया जा रहा है, हमारा प्रयोजन केवल इतना ही है भावना स्तर ऊँचा उठने के साथ-साथ समृद्धि बढ़ेगी तो उसका सदुपयोग होगा और तभी उससे व्यक्ति एवं समाज की सुख-शान्ति बढ़ेगी । भावना स्तर की उपेक्षा करके यदि सम्पत्ति पर ही जोर दिया जाता रहा तो दुर्गुणी लोग उस बढ़ोत्तरी का उपयोग विनाश के लिए ही करेंगे । बन्दर के हाथ में गई हुई तलवार किसी का क्या हित साधन कर सकेगी ?

सोमवार, दिसंबर 05, 2011

यह प्यार क्या है ?


















ब भी प्यार की बात होती है सब लोग सिर्फ एक लड़की और एक लड़के में होने वाले आकर्षण को ही प्यार मान लेते हैं. परन्तु प्यार वो सुखद अनुभूति है जो किसी को देखे बिना भी हो जाती है. एक बाप प्यार करता है अपनी औलाद से, पति करता है पत्नी से, बहन करती है भाई से, यहाँ कौन ऐसा है जो किसी न किसी से प्यार न करता हो. चाहे वह किसी भी रूप में क्यों न हो, प्यार को कुछ सीमित शब्दों में परिभाषित नहीं किया जा सकता. प्यार फुलों से पूछो जो अपनी खुशबु को बिखेरकर कुछ पाने की चाह नही करता, प्यार क्या है यह धरती से पूछो जो हम सभी को पनाह और आसरा देती है. इसके बदले में कुछ नही लेती, प्यार क्या है आसमान से पूछो जो हमे अहसास दिलाता है कि -हमारे सिर पर किसी का आशीर्वाद भरा हाथ है. प्यार क्या है सूरज की गर्मी से पूछो. प्यार क्या है प्रकृति के हर कण से पूछो  जवाब मिल जायेगा. प्यार क्या है सिर्फ एक अहसास है जो सबके दिलों में धडकता है. प्यार एक ऐसा अहसास है जिसे शब्दों से बताया नहीं जा सकता, आज पूरी  दुनिया प्यार पर ही जिन्दा है, प्यार न हो तो ये जीवन कुछ भी नहीं है. प्यार को शब्दों मैं परिभाषित नहीं किया जा सकता, क्योंकि अलग- 2 रिश्तों के हिसाब से  प्यार की अलग-2 परिभाषा होती है. प्यार की कोई एक परिभाषा देना बहुत मुश्किल है. यदि आपके पास कोई एक परिभाषा हो तो आप बताओ ? 
प्यार की परिभाषा नहीं दी जा सकती है, क्योंकि प्यार को अनुभव तो कर सकते है. लेकिन बता नहीं सकते जैसे-गूंगे को गुड खिला दो तब गूँगा गुड की मिठास को जान जायेगा.मगर उसको अगर पूछो तब वह बता नहीं सकता है. ठीक इसी तरह प्यार है. प्यार का मतलब अलग-अलग लोगों के लिए अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग होता है. इसलिए प्यार को एक परिभाषा में बांधना मुश्किल है. आप प्यार को एक लगाव कह सकते है. एक अशक्ति ही है प्यार. धार्मिक लोग उसे मोह  कहते है.
प्यार के अनेक रूप होते है जैसे-प्यार, प्रेम, आकर्षण, त्याग, बलिदान, तपस्या, दया, सम्मान, विश्वास, अहसास, स्नेह, जिंदगी, सजा, ईनाम, कला, जनून, कलंक, पूजा, कफन, बदनामी, समर्पण, अंधा, सौदर्य, दोस्ती, सच्चाई, मिलन, हवस, डर, वासना, इंसानियत, समाज, ईश्वर, ममता, पागलपन, तकलीफ, मौत, इच्छा, देखभाल, धोखा, नशा, दर्द, समझौता, शहर, मुसीबत, स्वप्न, खतरा, हथिहार, बीमारी, लडूडू, दवा, इबारत, दीवानापन, जिंदगानी, जहर, माता-पिता, जन्नत, मंजिल, हार-जीत, खेल, तन्हाई, जवानी, तोहफ़ा, जादू, नाज-नखरे, उपहार, चमत्कार आदि प्यार के ही कुछ रूप है. प्यार एक आजाद पंछी है. जो पूरे आसमां में स्वतंत्र उड़ता है. जो किसी के रोके रुकता नहीं है. प्यार एक आग का दरिया है जो डूबकर पार किया जाता है. प्यार एक कठिन डगर है जिसपर कोई साहसी ही चल सकता है.
प्यार जितना खुबसूरत शब्द है यह उतना ही इंसान को अच्छा भी बनाता है.प्यार जीना सिखाता है. क्या यह प्यार है? जब आपका आंसू किसी और की आँख में आये. वो प्यार है. प्यार जो हर पल आपका ख्याल रखे वो प्यार है. प्यार जो खुद भूखा रहकर पहले आपको खिलाये वो प्यार है. प्यार जो रात-रात भर जागकर आपको सुलाए वो प्यार है. जो अगर चोट आपको लगे तब दर्द उसको कहूँ या किसी दूसरे को हो वो प्यार है और हम ऐसे प्यार की अहमियत नहीं समझ पाते हैं. प्यार न तो दिल का चैन है, न दिल का रोग. प्यार निभाना उन लोगो के लिए कठिन नहीं है, जो सच्चे दिल से प्यार करते है. प्यार एक अनमोल रत्न है. जिसने इसकी परख कर ली, वो जिन्दगी में हर पल खुश और जो परख न कर पाया वो गम में जीते जी जिन्दा लाश बन जाता है. प्यार क्या है ? क्या जानते है ? कैसे होता है ? कितनी सारी बाते है ? प्यार पूजा है. प्यार भगवान् का ही दूसरा नाम है. करते हम प्यार की बात है, लेकिन प्यार से ही दूर भागते है.
प्यार, जिंदगी की सबसे बड़ी सजा है और ईनाम भी. बस कर्म सबके अपने-अपने होते है. प्यार किसे सजा के रूप में मिलता है और किसे ईनाम के रूप में. प्यार कुछ पाने का नाम नहीं-प्यार में सिर्फ दिया जाता है कुछ पाने की भावना रखना प्यार नहीं स्वार्थ ही कहलाता है. अत: प्यार को कोई परिभाषित नहीं कर सकता हैं. प्यार को परिभाषित करना एक असंभव कार्य है, क्योंकि प्यार अनन्त है.