" इस्लाम जगत में कुर्बानी के विरोध में क्रान्ति" ( वर्ष १९९७ संस्करण )" वर्तमान में इस्लाम जगत के जाने माने लेखक, वरिष्ठ पत्रकार पाकिस्तानी-निवासी श्री मसूद अहमद ने अपने लेख में लिखा है कि ईद पर होने वाली लाखों पशुओं की कुर्बानी जिससे पर्यावरण बुरी तरह से प्रभावित हो रहा है, रोकी जाए; यहाँ तक कि वहाँ के मजहबों मंत्री मौलाना अब्दुल सत्तार ने जनता से अपील करते हुए कहा है कि हज़रत मोहम्मद के दो सम्मान योग्य सहकारियों हज़रत अबुकर और हज़रत उम्र ने अपने तमाम जीवन में ईद के दिन एक भी पशु कुर्बान नहीं किया .... हज़रत मोहम्मद के एक और महत्वपूर्ण सहयोगी हज़रत अबू मसअद अंसारी बहुत बड़े व्यापारी थे. हजारों भेड़ों के मालिक थे, परन्तु उन्होंने कभी किसी जानवर को कुर्बान नहीं किया. हज़रत उमर ने अह करते हुए एक भी पशु की कुर्बानी नहीं दी. मराकों में इस्लामी-प्रणाली लागू है; वहाँ के शासक को अमीरुल मोमनीन कहा जाता है. जिन्होंने बारह वर्ष पूर्व ईद के अवसर पर विचार व्यक्त करते हुए कहा कि हर वर्ष तीस लाख पशुओं को कुर्बान किया जाता है, जिनकी कीमत २० करोड़ डालर है. इस प्रथा को रोक दिया जाए. वहाँ के उलमा ने शासक का साथ दिया और कुर्बानी रोक दी गयी. वैसे कुरान में भी साफ़ लिखा है कि अल्लाह खून और गोश्त पसंद नहीं करता, उस तक तो सिर्फ भावना ही पहुँचती है." - प.पू. देवी माँ (श्रीमती कुसुम अस्थाना)
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बुधवार, दिसंबर 14, 2011
इस्लाम जगत में कुर्बानी के विरोध में क्रान्ति.............
" इस्लाम जगत में कुर्बानी के विरोध में क्रान्ति" ( वर्ष १९९७ संस्करण )" वर्तमान में इस्लाम जगत के जाने माने लेखक, वरिष्ठ पत्रकार पाकिस्तानी-निवासी श्री मसूद अहमद ने अपने लेख में लिखा है कि ईद पर होने वाली लाखों पशुओं की कुर्बानी जिससे पर्यावरण बुरी तरह से प्रभावित हो रहा है, रोकी जाए; यहाँ तक कि वहाँ के मजहबों मंत्री मौलाना अब्दुल सत्तार ने जनता से अपील करते हुए कहा है कि हज़रत मोहम्मद के दो सम्मान योग्य सहकारियों हज़रत अबुकर और हज़रत उम्र ने अपने तमाम जीवन में ईद के दिन एक भी पशु कुर्बान नहीं किया .... हज़रत मोहम्मद के एक और महत्वपूर्ण सहयोगी हज़रत अबू मसअद अंसारी बहुत बड़े व्यापारी थे. हजारों भेड़ों के मालिक थे, परन्तु उन्होंने कभी किसी जानवर को कुर्बान नहीं किया. हज़रत उमर ने अह करते हुए एक भी पशु की कुर्बानी नहीं दी. मराकों में इस्लामी-प्रणाली लागू है; वहाँ के शासक को अमीरुल मोमनीन कहा जाता है. जिन्होंने बारह वर्ष पूर्व ईद के अवसर पर विचार व्यक्त करते हुए कहा कि हर वर्ष तीस लाख पशुओं को कुर्बान किया जाता है, जिनकी कीमत २० करोड़ डालर है. इस प्रथा को रोक दिया जाए. वहाँ के उलमा ने शासक का साथ दिया और कुर्बानी रोक दी गयी. वैसे कुरान में भी साफ़ लिखा है कि अल्लाह खून और गोश्त पसंद नहीं करता, उस तक तो सिर्फ भावना ही पहुँचती है." - प.पू. देवी माँ (श्रीमती कुसुम अस्थाना)
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