एक बार किसी बच्चे ने मुझ से पूछा कि "ओम नम:
शिवाय" का क्या मतलब है? तो मैने कहा कि इसका मतलब है भगवान शिव को नमस्कार
करो या मैं भगवान शिव को नमस्कार करता हूँ. तो वो बोला इसमे मंत्र क्या
हुआ? मैं सोच मे पड़ गया कि वाकई ही इसमे मंत्र क्या हुआ?
मेरे एक पेशेंट थे, शर्मा जी. उन्होने 3-4 दिनो तक पत्नी संग
महामृत्युंज मन्त्र का जाप करवाया और उसके पूरा होने के दो दिन बाद हार्ट
फेल से मृत्यु को प्राप्त हो गये! आख़िर महामृत्युंज मन्त्र ने अपना काम
क्यों नही किया?
डॉ शिवानंद, जी ने अपनी एक पुस्तक मे
गायत्री मंत्र के बारे मे लिखा कि इसका जाप करने से आदमी स्मस्त तरह की
बीमारी से मुक्त हो जाता है! ये बात एक जर्मन जर्नलिस्ट ने पढ़ी और उछल
पड़ा !! उसने सोचा ये आदमी जीनियस है जिसने इतनी बड़ी ईजाद कर दी, दुनिया
भी पागल है पता नही किस किस को नोबल पुरस्कार दे देती है. इस डॉ शिवानंद को
देना चाहिए. सारी बीमारियाँ एक झटके मे ख़तम!! उसे शक की कोई गुंजाइश भी
नही लगी क्योंकि शिवानंद एक क्वालिफाइड डॉक्टर था सो ऐसा आदमी जब अध्यात्म
मे उतरेगा तो तत्थ के साथ ही बोलेगा! पूरा निरीक्षण करके ही बोलेगा! अब उस
बेचारे को क्या पता हिन्दुस्तान मे ऐसे बोलने वाले गली गली मे मिल जाएगें!
क्या डॉ और क्या इंजिनियर यहाँ सारे पढ़े लिखे पागल बसते है! विज्ञान पढ़
लिया है पर वैज्ञानिक दृष्टिकोण किसी का नही है. इन शॉर्ट वो जर्नलिस्ट
भारत आया और ढूँढता ढूँढता डॉ शिवानंद के आश्रम पहुँच गया, उसे वहाँ
शिवानंद का एक चेला मिला तो उसने चेले से कहा कि मुझे डॉ. शिवानंद से मिलना
है तो चेला बोला कि आप अभी गुरुजी से नही मिल सकते. कारण पूछने पर चेले ने
बताया कि गुरुजी बीमार है सो अभी नही मिल सकते, दो चार दिन बाद आना! वो
जर्मन जर्नलिस्ट तो हैरान रह गया, उसने कहा कि खुद शिवानंद ने लिखा है कि
इस मंत्र से समस्त बीमारियाँ ठीक हो जाती है तो वो इसका जाप करके ठीक क्यों
नही हो जाते! अब चेला बेचारा क्या बोलता, असलियत तो सभी को पता है! असल
धंधा कुछ और होता है, ये तो दिखावे के बोल बचन है. खैर चेले ने उसे सारी
असली बात बता दी कि ऐसा कहते है पर होता कुछ नही! वो बेचारा जर्नलिस्ट तो
शॉक्ड रह गया " इतना बड़ा फ्रॉड!" वो वापस जर्मनी चला गया और वहाँ उसने
क्या लिखा वो जाने दो..... समझ सकते हो कि हिन्दुस्तानियो के बारे मे क्या
लिखा होगा :-)
वेल्ल कुल सार इतना है कि क्या ये बाते वाकई ही झूठी है? मंत्र अपना
काम क्यों नही करते? हमारे ऋषि मुनि क्या ग़लत थे या मंत्र ही ग़लत है !
दरअसल हिंदू धर्म मे विधियाँ और सिद्धियाँ पाने के तीन तरीके है :
तंत्र, मंत्र और यंत्र. हमारा सारा तप और योग इन्ही तीन चीज़ो द्वारा
संपन्न होता है. भक्ति अलग चीज़ है. भक्ति की शक्ति भगवान पर, आस्था पर
खड़ी है! भगवान नही है तो भक्ति भी पैदा नही हो सकती! तप और योग किसी भगवान
की शक्ति को नही बल्कि अपनी अंदरूनी शक्तियो को जगाने के तरीके है. सारा
खेल उर्जा को जगाने, उठाने के लिए है. उर्जा कंट्रोल हो गई तो बड़े बड़े
काम सिद्ध होने लगते है. यानी प्यूर्ली गेम ऑफ पावर!
ऋषि मुनियो ने बहुत समय तक ये कहा कि शास्त्र ना लिखे जाए वैसे भी
शास्त्र कहा जाता था, बताया जाता था. सिखाया जाता था पर लिखा नही जाता था!
लिखा हुआ शास्त्र नही होता, किताब या ग्रंथ होता है. पर बेवकूफ़
ब्राह्मणवाद ने इसे लिख दिया और यही से इसका सारा प्रभाव खो गया! ऋषि मुनि
अपने गुरुकुल मे शिष्यो को मंत्रो का उच्चारण सिखाया करते थे जो मौखिक था,
लिखित नही!! कहाँ सुर लंबा करना है और कहाँ धीमा, सब सिखाया जाता था.
बिल्कुल वैसे ही जैसे आप गायकी सीखते है, सब रियाज़ पे डिपेंड करता है ना की
पढ़के रटना है! मंत्र सारा खेल ध्वनि का है और ध्वनि लिखी नही जा सकती!
शब्द लिखा जा सकता है!! और आज आप शब्द बोल रहे हो ना की ध्वनि निकाल रहे हो
तो मंत्र असर कैसे करेगा? आप किसी को किस करते हो अगर उसे लिखोगे तो किस की
आवाज़ को कैसे लिखोगे? "पुच्च या अक्स" पर ये तो शब्द बन गया ये वो सही ध्वनि नही है जो किस करते समय निकली थी! महत्व ध्वनि का है और हम
शब्द मे उलझ जाते है. ट्रिन ट्रिन, क्लिक, टिप टिप , पुच्च, ह्म्म, पियू,
भो भो, टन टन, छीशी, उँआं, छुक छुक, ढम ढम, ठक ठक, सर्ररर, पर्र्ररर,
छिंन्न्न्, छपाक इत्यादि सब ध्वनि को शब्दो मे बदला गया है! आप इसे
भाषानुसार पढ़ोगे तो कुछ हासिल नही होगा, सही ध्वनि सुनोगे तो दिलो
दिमाग़ पे असर होगा !! ध्वनि एक उर्जा है जो मंत्रो मे व्याप्त होती थी और
असर उसी का होता था नाकी शब्दो का ! मंत्रो से ही संगीत और गायकी निकली,
शास्त्रीय संगीत या गायन मे जो प्रभाव है उसका बेस वही ध्वनि है जो मंत्रो
मे होती है. सुबह, दोपहर, शाम और रात के मूड के हिसाब से राग बनाए गये. अब
उस रागो के असर से आप मंत्र के असर को समझ सकते है. जीवन के खास खास मौको
के लिए खास खास मंत्र बनाए गये ताकि तनाव ना रहे.
ओम भी एक शब्द है जिसे लिखा गया है वरना इसका उच्चारण एक गूँज है बस,
पेट फेफड़ो और गले से आती हुई हवा की आवाज़ पर हम इसे लिखेगें 'ओम' ! अब
'आ' पे कितना ज़ोर देना है या 'ओ' पे कितना या 'म' पे कितना, कुछ पता नही.
तो सही सही उच्चारण निकलेगा कैसे? जब ओरिजनल उच्चारण ही नही निकलेगा तो
मंत्र अपना काम कैसे करेगें! काम तो उन ध्वनियो ने करना था जो हमने निकाली
ही नही! सो लिखे हुए मंत्र सब वेस्ट हो गये और हम आज खा मा खा के शब्दो से
खेल रहे है.
पूरी कायनात मे, पूरी दुनिया मे सिर्फ़ ध्वनि पैदा होती है, शब्द नही!
हवा की सायँ सायँ, पेड़ो के पत्तो की आपस मे टकरा कर आती आवाज़, पानी का
कल कल, जानवरो की आवाज़े, पंछीयो की चहचाहट, मशीनो की आवाज़, हमारे कदमो की
आहट इवन हमारी हँसी, रोना, चीखना सारे भाव सिर्फ़ ध्वनि पैदा करते है.
शब्द हमारी इज़ाद है और अपनी इस मेनमेड थिंग के कारण हम असली शक्ति (ध्वनि)
से दूर होते चले गये! सच कहूँ तो बिना शब्द के जो ध्वनि हम सुनते है उससे
हम सही नतीजे पर पहुँच जाते है, शब्द उल्टा भटका देते है. अँधा आदमी या कोई
बच्चा या पागल... कोई भी हो ध्वनि सुनकर सब समझ जाएगा कि क्या हुआ है!
शब्द झूठ बोल सकते है पर ध्वनि कभी झूठ नही बोलती.
आज यही हाल मंत्र का है! हम शब्द और उसका भावार्थ की पढ़ते और समझते
है पर उसका असर या आउटपुट निल्ल बटा निल्ल. ऋषियो ने जो बरसो मेहनत करके
ध्वनि इज़ाद की थी जिससे वो हर चीज़ को बाँध लेते थे, उसके असर से ख़तरनाक
जानवर और आधियों को भी रोक लेते थे इवन बरसात भी ले आते थे और दूसरी
शक्तियो को भी बाँध लेते थे. सब खो गया!! क्योंकि दूसरो को मंत्र सीखने
सिखाने मे ज़्यादा मेहनत ना करती पड़े इसके लिए ब्राह्मणवाद ने इसे लिख
दिया और लिखते ही सारा असर उड़ान छू!! संगीत की तरह इसे रियाज़ और उच्चारण
पर रखते तो शायद आगे ओर कमाल कर सकते थे. अब ओम भुर्भुव: स्वाहा करो या ओम
ब्लिंग ब्लोंग ब्लांग करो, कोई फ़र्क नही पड़ने वाला. आज मंत्र सिर्फ़ एक
कोट और उसका मतलब बनकर रह गया. आपने एक शब्द सुना होगा "मंत्र मुग्ध" हो
जाना यानी बँध जाना, आज ऐसा नही होता क्योंकि मंत्रो मे मौजूद मुग्ध करने
वाली ध्वनि नदारद है. अपने बनाए शब्दो से खेलते रहिए. हवन करिए या शादी के
मंत्र पढ़िए, कुछ शुभ लाभ नही होना!