शुक्रवार, फ़रवरी 24, 2012

योग के माध्यम से...........























यदि आपकी फिटनेस सही नहीं है तो लुक को चेंज 
करने के मार्केट में प्रचलित सारे कास्ट्यूम आपके
 लिए व्यर्थ है। आप जमाने के साथ टिक नहीं सकते। 
कितने ही अच्‍छे कपड़े पहन लें, लेकिन आपकी बॉडी 
यदि बेढप है तो वे कपड़े शायद ही सुटेबल लगे।

इसीलिए अब योग के माध्यम से प्राकृतिक सौंदर्य 
और कोमल देह की चाहत रखने वालों की संख्या बढ़ रही है।
 सभी को यह अहसास होने लगा है कि योग के माध्यम से
 सुंदर और सेक्सी बना रहा जा सकता है। प्राणायाम जहाँ 
हमारे जीवन की दीर्घता बढ़ाता हैं वहीं आसन हमारे शरीर
 को सेहतमंद और जवान बनाए रखने में सक्षम हैं।

गुरुवार, फ़रवरी 23, 2012

योग का विराट और व्यापक स्वरुप.......


















"जब हम योगाभ्यास करते हैं तो बाहरी आलंबन
 नहीं लेने पड़ते हैं अपितु हमारे भीतर से ही हारमोंस
 का श्राव होने लगता है |हमारी रासायनिक प्रक्रिया
 संतुलित हो जाती है |शरीर का Anabolism ,
Catabolism,Metabolism rate
अर्थात वात् ,पित्त ,कफ सम अवस्था मे आ जाते हैं ,
मन शांत हो जाता है ,गहरा संतोष भीतर से मिलता है |
अतः सारा अवसाद दूर हो जाता है तथा भगवदीय कृपा 
के प्रसाद से जीवन मे पूर्णता की अनुभूति होने लगती है ,
यही योग का विराट या व्यापक स्वरुप है |"

शुक्रवार, फ़रवरी 10, 2012

जीवन डोर प्रभु के हाथों में..........


























जीत उन्हीं की होती है जो भौतिक शक्तिओं तक
ही सीमित न रह कर परमात्मा को अपने जीवनरथ
का सारथी बना लेते हैं।ईश्वर विश्वास के लिए श्रद्धा
का महत्त्वपूर्ण स्थान है। भौतिक जीवन तथा शारीरिक
क्षेत्र में प्रेम की सीमा होती है। जब यही प्रेम आन्तरिक
अथवा आत्मिक क्षेत्र में काम करनेलगता हैतो उसे श्रद्धा
कहते हैं। यह श्रद्धा ही ईश्वर-विश्वास का मूल स्रोत है एवं 
श्रद्धा के माध्यम से ही उस विराट की अनुभूति सम्भव है।
श्रद्धा समस्त जीवन नैया की पतवार को ईश्वर के हाथों सौंप
देती है। जिसकी जीवन डोर प्रभु के हाथों में हो भला उसे क्या
भय ! भय तो उसी को होगा जो अपने कमजोर हाथ पाँव
अथवा संसार की शक्तियों पर भरोसा करके चलेगा। जो प्रभु का
आंचल पकड़ लेता हैवह निर्भय हो जाता हैउसके सम्पूर्ण
जीवन से प्रभु का प्रकाश भर जाता है। तब उसके जीवन
व्यापार का प्रत्येक पहलू प्रभु प्रेरित होता हैउसका चरित्र 
दिव्य गुणों से सम्पन्न हो जाता है।

गुरुवार, फ़रवरी 09, 2012

स्वस्थ व्यक्ति की दिनचर्या..........

















स्वस्थ व्यक्ति की दिनचर्या के अंतर्गत आज हम अन्य बिंदुओं पर प्रकाश डालेंगे :-

निद्रा --भगवान ने प्रकृति को कुछ ऐसे नियमों में बाँधा है की मनुष्येतर प्राणी पशु ,पक्षी सायंकाल होने पर अपने अपने ठिकानों पर चले जाते हैं |ये अभागा मनुष्य ही उल्लू की तरह रात भर जागता है और ब्रह्म्बेला का आनंद लिए बिना पड़ा रहता है |
स्वस्थ व्यक्ति को 5-6 घंटे की नींद पर्याप्त है |बच्चों और वृद्ध लोगों को कम से कम 8 घंटे सोना चाहिए |

1-अगर रात में नींद नहीं आ रही हो ,धरती माँ के पैर छुएं और सीधे लेटकर 100 से 1 तक उलटी गिनती मन ही मन में ओम के साथ करें धीरे -धीरे नींद आ जायेगी |

2-ब्रह्मचर्य--अपनी इन्द्रियों एवं मन को विषयों से हटाकर ईश्वर एवं परोपकार में लगाने का नाम ब्रह्मचर्य है |केवल उपस्थ इन्द्रिय का संयम -मात्र ही ब्रह्मचर्य नहीं है |

3--स्नान --रोगी को छोड़ कर सामान्य व्यक्ति को ठन्डे पानी से स्नान करना चाहिए |गर्म पानी से स्नान करने पर मन्दाग्नि एवं दृष्टि दुर्बलता इत्यादि रोग हो जाते हैं |असमय में ही बाल सफ़ेद होने एवं गिरने लगते हैं |
स्नान के बाद शरीर को खादी के तौलिए से रगड़ केपोंछना चाहिए |यदि कब्ज है पेट को रगड़ कर पोंछना चाहिए |

4-व्यायाम --बिना व्यायाम के शरीर अस्वस्थ तथा ओज -कांतिहीन हो जाता है |जबकि नियमित रूप से वायाम करने से दुर्बल ,रोगी एवं कुरूप व्यक्ति भी बलवान स्वस्थ एवं सुन्दर हो जाता है |

ह्रदय रोग ,मधुमेह मोटापा ,वातरोग ,बवासीर गैस ,रक्तचाप ,मानसिक तनाव आदि का भी मुख्य कारण शारीरिक श्रम का अभाव है |इनमे आसान -प्राणायाम सर्वोत्तम है |इससे शरीर के साथ मन में एकाग्रता एवं शान्ति का विकास होता है |

गुरुवार, फ़रवरी 02, 2012

कुछ अनुभूत टोटके.............
















कौऐ का एक एक पूरा काला पंख कही से मिल जाए जो 
अपने आप ही निकला हो उसे “ॐ काकभूशुंडी नमः सर्वजन
मोहय मोहय वश्य वश्य कुरु कुरु स्वाहा”इस मंत्र को बोलते 
जाए और पंख पर फूंक लगाते जाए, इस प्रकार १०८ बार करे. 
फिर उस पंख को आग लगा कर भस्म कर दे. उस भस्म को
अपने सामने रख कर  लोबान धुप दे और फिर से १०८ बाद 
बिना किसी माला के अपने सामने रख कर दक्षिण दिशा की 
और मुख कर जाप करे. इस भस्म का तिलक ७ दिन तक करे.
तिलक करते समय भी मंत्र को ७ बार बोले. ऐसा करने पर सर्व
जन साधक से मोहित होते है
 

"मोर के पंख को घर के मंदिर मे रखने से समृद्धि की वृद्धि होती है"

सभी इन्द्रियों को संयमित किया जाए.....

























घड़ी के पुर्जों में जैसे एक चक्र दूसरे चक्र से
संबन्धित रहता है, मशीनों में एक पुर्जा दूसरे 
पुर्जे को चलाता है उसी प्रकार इन्द्रियों में भी
एक इन्द्रिय दूसरी इन्द्रिय को प्रेरणा देती है |
उदाहरण के लिए आँख ने कोई सुन्दर वस्तु देखी,
आँख ने वह सन्देश मस्तिष्क तक पहुँचाया, मन 
ने उसे प्राप्त करने की आकांक्षा की, बुद्धि ने उसके 
लिए योजना बनायी, पैर उस वस्तु तक पहुँचे और 
हाँथों ने उसे पकड़ा |काम विकार के उमड़ने और 
मर्यादाओं का उल्लंघन होने में भी यही प्रक्रिया 
काम करती है | इसीलिए कहा गया है कि ब्रह्मचर्य 
की आवश्यकता केवल शरीर संयम से ही पूरी नहीं 
हो जाती उसके लिए अपने सभी आधार व्यवहारों 
को ही संयमित करना पड़ता है |