घड़ी के पुर्जों में जैसे एक चक्र दूसरे चक्र से
संबन्धित रहता है, मशीनों में एक पुर्जा दूसरे
पुर्जे को चलाता है उसी प्रकार इन्द्रियों में भी
एक इन्द्रिय दूसरी इन्द्रिय को प्रेरणा देती है |
उदाहरण के लिए आँख ने कोई सुन्दर वस्तु देखी,
आँख ने वह सन्देश मस्तिष्क तक पहुँचाया, मन
ने उसे प्राप्त करने की आकांक्षा की, बुद्धि ने उसके
लिए योजना बनायी, पैर उस वस्तु तक पहुँचे और
हाँथों ने उसे पकड़ा |काम विकार के उमड़ने और
मर्यादाओं का उल्लंघन होने में भी यही प्रक्रिया
काम करती है | इसीलिए कहा गया है कि ब्रह्मचर्य
की आवश्यकता केवल शरीर संयम से ही पूरी नहीं
हो जाती उसके लिए अपने सभी आधार व्यवहारों
को ही संयमित करना पड़ता है |
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