शनिवार, मार्च 31, 2012

पाप कर्मों से बचाव...........
























 
बुरे विचार, नीच कर्मों को करने की इच्छाएँ एक प्रकार 
की दाहक चिनगारियाँ हैं, जो जहाँ रहती हैं, वहाँ के पदार्थों
 को जलाती हैं । कोई मनुष्य आग की लपटों से खेलना चाहे 
तो वह बिना झुलसे बच नहीं सकता । यदि आपकी बुद्धि छल, 
दंभ, द्वेष, दुराचार, क्रोध, कलह में लगी रहती है, तो निश्चय
 समझिये कि आप चाहे सरस्वती के पुत्र ही क्यों न हों, कुछ
 ही समय में बाजारू गुंडों की श्रेणी में पहुँच जायेंगे ।

सद्बुद्धि उन्हें हो सकती है, जिनका जीवन व्यवस्थित और संयत है 
एवं जो दुर्गुणों की नहीं, सतगुणों की उपासना करते हैं । सत्यनिष्ठा, 
प्रेम, उदारता, सरलता, दया, सेवा, आत्मीयता, स्वतंत्रता आदि गुणों
 के पौधों के साथ-साथ सद्बुद्धि की लता भी बढ़ती है । यह लता-गुल्म 
एक ही क्यारी में उगे हुए हैं, दोनों की एक खुराक है । याद रखिये कि जिसके सद्गुण सूख जायेंगे-उसकी सद्बुद्धि भी हरी न रह सकेगी, 
इसलिए जो बुद्धिमान् बनना चाहता है, उसे सद्गुणी भी बनना चाहिए ।

बुधवार, मार्च 14, 2012

अभ्यास से उन्नति.........





















अभ्यास से उन्नति जीवन का अखंड नियम है,
 क्योंकि इससे आत्मा की प्राणशक्ति को अधिक
 क्रिया करनी पड़ती है और वह नित्य व्यवहार में
 आने वाले चाकू की तरह मुर्छा आदि से मुक्त रहकर
 तेज ही होती है। शारीरिक और मानसिक विकास 
के शास्त्रीय सिद्धांतों पर विचार करने से यह सिद्ध 
होता है कि मानसिक विकास करना, अपनी बुद्धि 
को बढ़ाना, मनुष्य के अपने हाथ में है और वह
 प्रयत्नपूर्वक बुद्धिमान् बन सकने में सर्वथा स्वतंत्र है।