बुरे विचार, नीच कर्मों को करने
की इच्छाएँ एक प्रकार
की दाहक चिनगारियाँ हैं, जो जहाँ रहती हैं, वहाँ के
पदार्थों
को जलाती हैं । कोई मनुष्य आग की लपटों से खेलना चाहे
तो वह बिना
झुलसे बच नहीं सकता । यदि आपकी बुद्धि छल,
दंभ, द्वेष, दुराचार, क्रोध, कलह
में लगी रहती है, तो निश्चय
समझिये कि आप चाहे सरस्वती के पुत्र ही क्यों न
हों, कुछ
ही समय में बाजारू गुंडों की श्रेणी में पहुँच जायेंगे ।
सद्बुद्धि
उन्हें हो सकती है, जिनका जीवन व्यवस्थित और संयत है
एवं जो दुर्गुणों की
नहीं, सतगुणों की उपासना करते हैं । सत्यनिष्ठा,
प्रेम, उदारता, सरलता,
दया, सेवा, आत्मीयता, स्वतंत्रता आदि गुणों
के पौधों के साथ-साथ सद्बुद्धि
की लता भी बढ़ती है । यह लता-गुल्म
एक ही क्यारी में उगे हुए हैं, दोनों की
एक खुराक है । याद रखिये कि जिसके सद्गुण सूख जायेंगे-उसकी सद्बुद्धि भी
हरी न रह सकेगी,
इसलिए जो बुद्धिमान् बनना चाहता है, उसे सद्गुणी भी बनना
चाहिए ।
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