Online Treatment For Chronic & Incurable Disease Through:- Advanced Homoeopathy, Naturopathy, Acupressure, Yoga, Herbal & Reiki.....
गुरुवार, जुलाई 26, 2012
बुधवार, जुलाई 25, 2012
कोई विकल्प है नहीं.............
मिठाई-मिठाई रटते रहने और उनके स्वरूप-स्वाद का
आलंकारिक वर्णन करते रहने
भर से न तो मुँह मीठा होता है,
और न पेट भरता है। उसका रसास्वादन करने और
लाभ उठाने
का तरीका एक ही है, कि जिसकी भावभरी चर्चा की जा रही है,
उसे
खाया ही नहीं, पचाया भी जाय। धर्म उसे कहते हैं, जो धारण
किया जाय। उस
आवश्यकता के पूर्ति के लिए कथा-प्रवचनों को
कहते-सुनते रहना भी कुछ कारगर न
हो सकेगा। बात तो तभी बनेगी,
जब जिस प्रक्रिया का माहात्म्य कहा-सुना जा
रहा हो, उसे व्यवहार
में उतारा जाय। व्यायाम किए बिना कोई पहलवान कहाँ बन
पाता है?
इसी प्रकार धर्म के तत्त्वज्ञान को व्यावहारिक जीवनचर्या में
उतारने के
अतिरिक्त और कोई विकल्प है नहीं।
बुधवार, जुलाई 18, 2012
ईश्वर के यहाँ देर हो सकती है, अन्धेर नहीं..........
ईश्वर के यहाँ देर हो
सकती है, अन्धेर नहीं। सरकार और समाज
से पाप को छिपा लेने पर भी आत्मा और
परमात्मा से उसे छिपाया
नहीं जा सकता। इस जन्म या अगले जन्म में हर
बुरे-भले कर्म का
प्रतिफल निश्चित रूप से भोगना पड़ता है। आज का लिया कर्ज
कल
चुकाना पड़ेगा। इससे यह नहीं सोचा जा सकता कि कर्ज के नाम पर
लिया हुआ
पैसा मुफ्त में मिल गया। ईश्वरीय कठोर व्यवस्था उचित
न्याय और उचित कर्मफल
के आधार पर ही बनी हुई है। सो तुरन्त न
सही कुछ देर बाद अपने कर्मों का फल
भोगने के लिए हर किसी को
तैयार रहना चाहिए।
रविवार, जुलाई 15, 2012
संसार भी एक ग्रेविटी है.........
बहुत-से व्यक्ति थे जो पहले सिद्धान्तवाद की राह पर चले और भटक
कर कहाँ से
कहाँ पहुँचें? भस्मासुर का पुराना नाम बताऊँ आपको!
मारीचि का पुराना नाम
बताऊँ आपको। ये सभी योग्य तपस्वी थे।
पहले जब उन्होंने उपासना-साधना शुरू
की थी, तब अपने घर से तप
करने के लिए हिमालय पर गए थे। तप और पूजा-उपासना
के साथ-साथ
में कड़े नियम और व्रतों का पालन किया था। तब वे बहुत मेधावी थे,
लेकिन समय और परिस्थितियों के भटकाव में वे कहीं के मारे कहीं चले गए। भस्मासुर का क्या हो गया? जिसको प्रलोभन सताते हैं वे भटक जाते हैं और कहीं के मारे कहीं चले जाते हैं।
साधु-बाबाजी जिस दिन घर से निकलते हैं, उस दिन यह श्रद्धा लेकर निकलते हैं,कि हमको संत बनना है, महात्मा बनना है, ऋषि बनना है, तपस्वी बनना है।लेकिन थोड़े दिनों बाद वह जो उमंग होती है, वह ढीली पड़ जाती है और ढीली पड़ने के बाद में संसार के प्रलोभन उनको खींचते हैं। किसी की बहिन-बेटी की ओर देखते हैं, किसी से पैसा लेते हैं। किसी को चेला-चेली बनाते हैं। किसी की हजामत बनाते हैं। फिर जाने क्या से क्या हो जाता है? पतन का मार्ग यहीं से आरम्भ होता है। गे्रविटी-गुरुत्वाकर्षण पृथ्वी की हर चीज को ऊपर से नीचे की ओर खींचती है।संसार भी एक ग्रेविटी है। आप लोगों से सबसे मेरा यह कहना है,कि आप गै्रविटी से खिंचना मत। रोज सबेरे उठकर भगवान के नाम के साथ में यह विचार किया कीजिए कि हमने किन सिद्धान्तों के लिए समर्पण किया था?
साधु-बाबाजी जिस दिन घर से निकलते हैं, उस दिन यह श्रद्धा लेकर निकलते हैं,कि हमको संत बनना है, महात्मा बनना है, ऋषि बनना है, तपस्वी बनना है।लेकिन थोड़े दिनों बाद वह जो उमंग होती है, वह ढीली पड़ जाती है और ढीली पड़ने के बाद में संसार के प्रलोभन उनको खींचते हैं। किसी की बहिन-बेटी की ओर देखते हैं, किसी से पैसा लेते हैं। किसी को चेला-चेली बनाते हैं। किसी की हजामत बनाते हैं। फिर जाने क्या से क्या हो जाता है? पतन का मार्ग यहीं से आरम्भ होता है। गे्रविटी-गुरुत्वाकर्षण पृथ्वी की हर चीज को ऊपर से नीचे की ओर खींचती है।संसार भी एक ग्रेविटी है। आप लोगों से सबसे मेरा यह कहना है,कि आप गै्रविटी से खिंचना मत। रोज सबेरे उठकर भगवान के नाम के साथ में यह विचार किया कीजिए कि हमने किन सिद्धान्तों के लिए समर्पण किया था?
और पहला कदम जब उठाया था तो किन सिद्धान्तों के आधार पर उठाया था? उन
सिद्धान्तों को रोज याद कर लिया कीजिए। रोज याद किया कीजिए कि हमारी उस
श्रद्धा में और उस निष्ठा में, उस संकल्प और उस त्यागवृत्ति में कहीं फर्क
तो नहीं आ गया। संसार में हमको खींच तो नहीं लिया। कहीं हम कमीने लोगों की
नकल तो नहीं करने लगे। आप यह मत करना। अब एक और नई बात शुरू करते हैं।
गुरुवार, जुलाई 05, 2012
"क्या हम ईश्वर को मानते है ?
ईश्वर और परलोक आदि के मानने की बात मुँह से न कहिये।
जीवन से न कहकर मुँह से कहना अपने को और दुनिया
को धोखा देना है । हममें से अधिकांश ऐसे धोखेबाज ही हैं।
इसलिये हम कहा करते है कि हजार में नौ-सौ निन्यानवे
व्यक्ति ईश्वर को नहीं मानते । मानते होते तो जगत में पाप
दिखाई न देता ।
अगर हम ईश्वर को मानते तो क्या अँधेरे में पाप करते ?
समाज या सरकार की आँखों में धूल झोंकते ? उस समय
क्या यह न मानते कि ईश्वर की आँखों में धूल नहीं झोंकी गई ?
हममें से कितने आदमी ऐसे हैं जो दूसरों को धोखा देते समय
यह याद रखते हों कि ईश्वर की आँखें सब देख रही हैं ? अगर
हमारे जीवन में यह बात नहीं है, तो ईश्वर की दुहाई देकर
दूसरों से झगड़ना हमें शोभा नहीं देता ।
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