शनिवार, अगस्त 25, 2012

यह मत पूछिए कि हम क्या करें? यह पूछिए कि क्या बनें?

साधकों में से कई व्यक्ति हमसे यह पूछते रहते हैं कि हम क्या करें? मैं उनमें से हर एक से कहता हूँ कि यह मत पूछिए, बल्कि यह पूछिए कि क्या बनें? अगर आप कुछ बन जाते हैं तो करने में भी ज्यादा कीमती है वह। फिर जो कुछ भी कुछ भी आप कर रहे होंगे, वह सब सही हो रहा होगा। आप साँचा बनने की कोशिश करें। अगर आप साँचा बनेंगे तो जो भी गीली मिट्टी आपके सम्पर्क में आएगी, आपके ही तरीके के, आपके ही ढंग के, शक्ल के खिलौने बनते हुए चले जाएँगे। आप सूरज बनें तो आप चमकेंगे और चलेंगे। उसका परिणाम क्या होगा? जिन लोगों के लिए आप करना चाहते हैं, वे आपके साथ-साथ चमकेंगे और चलेंगे।..... हम चलें, हम प्रकाशवान हों, फिर देखेंगे कि जिस जनता के लिए आप चाहते थे कि वह हमारी अनुगामी बने और हमारी नकल करे तो वह ऐसा ही करेगी। आप देखेंगे कि आप चलते हैं तो दूसरे लोग भी चलते हैं।..... हमको बीजों की जरूरत है। आप बीज बनिए, गलिए, वृक्ष बनिए और अपने भीतर से ही फल पैदा करिए और प्रत्येक फल में से ढेरों के बीज पैदा कीजिए। आप अपने भीतर से ही बीज क्यों नहीं बनाएँ?
मित्रो! जिन लोगों ने अपने आपको बनाया है, उनको यह पूछने की जरूरत नहीं पड़ी कि क्या करेंगे? उनकी प्रत्येक क्रिया इस लायक बन गई कि उनकी क्रिया ही सब कुछ करा सकने में समर्थ हो गई। उनका व्यक्तित्व ही इतना आकर्षक रहा कि प्रत्येक सफलता को और प्रत्येक महानता को सम्पन्न करने के लिए काफी था।..... गाँधी जी ने अपने आपको बनाया था तभी हजारों आदमी उसके पीछे चले। बुद्ध ने अपने आपको बनाया, हजारों आदमी उनके पीछे चले।..... समाज की सेवा भी करनी चाहिए, पर मैं यह कहता हूँ कि समाज-सेवा से भी पहले ज्यादा महत्त्वपूर्ण इस बात को आप समझें कि हमको अपनी ‘क्वालिटी’ बढ़ानी है।..... हम अपने आपको फौलाद बनाएँ। अपने आपकी सफाई करें। अपने आपको धोएँ। अपने आपको परिष्कृत करें। इतना कर सकना यदि हमारे लिए सम्भव हो जाए तो समझना चाहिए कि आपका यह सवाल पूरा हो गया कि हम क्या करें? क्या न करें? आप अच्छे बनें। समाज-सेवा करने से पहले यह आवश्यक है कि हम समाज-सेवा के लायक हथियार तो अपने आपको बना लें। यह ज्यादा अच्छा है कि हम अपने आपकी सफाई करें।

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