एक
महात्मा के पास एक सती गई और बोली-महाराज चरणोदक दें तो मेरे गर्भ का बालक
भी महान् बने। सन्त ने कहा-बेटी चरणोदक और आशीर्वाद से नहीं तुम्हारे
रहन-सहन आहार-बिहार और आत्मिक शुद्धता से सन्तान महान् बनेगी।
कपिल मुनि जिस रास्ते से
गुरुकुल जाते, उसमें एक विधवा का घर पड़ता, विधवा की निर्धनता से दुःखी
होकर वे एक दिन उसके पास जाकर बोले तुम चाहो तो आर्थिक सहायता का प्रबन्ध
करा दूँ। विधवा ने कहा-मुनिवर आपने भूल की, मेरे तो एक अत्यन्त अमूल रत्न
है? मुनि ने चारों तरफ दृष्टि दौड़ाई, कुछ दिखा नहीं। वे पूछ बैठे क्या वह
रत्न मुझे भी दिखायेगी। अभी यह बात हो ही रही थी कि उसका पुत्र पढ़कर लौटा
उसने माँ के पैर छूकर
कहा-माँ आज भी मैंने अपना पाठ ठीक तरह पढ़ा लाओ कुल्हाड़ी अब लकड़ियाँ ले
आऊँ? कपिल बच्चे के संस्कारों से बड़े प्रभावित हुए उन्होंने कहा-सचमुच
संस्कारवान् पुत्र और रत्न में कोई अन्तर नहीं।
__._,_.___