बंधन - आत्माओं को मार डालते है, सड़ा डालते है।
जीवन को जबरदस्ती बंधनों में जीने से उचित है कि आदमी स्वतंत्रता से जीए। और बंधन जितने टूट जाएं उतना अच्छा है। क्योंकि बंधन केवल आत्माओं को मार डालते है, सड़ा डालते है। तुम्हारे जीवन को दूभर कर देते है।
जीवन एक सहज आनंद, उत्सव होना चाहिए। इसे क्यों इतना बोझिल, इसे क्यों इतना भारी बनाने की चेष्टा चल रही है? और मैं नहीं कहता हूं कि अपनी स्व-
जीवन को जबरदस्ती बंधनों में जीने से उचित है कि आदमी स्वतंत्रता से जीए। और बंधन जितने टूट जाएं उतना अच्छा है। क्योंकि बंधन केवल आत्माओं को मार डालते है, सड़ा डालते है। तुम्हारे जीवन को दूभर कर देते है।
जीवन एक सहज आनंद, उत्सव होना चाहिए। इसे क्यों इतना बोझिल, इसे क्यों इतना भारी बनाने की चेष्टा चल रही है? और मैं नहीं कहता हूं कि अपनी स्व-
स्फूर्त
चेतना के विपरीत कुछ करो। किसी व्यक्ति को एक ही व्यक्ति के साथ
जीवन-भर प्रेम करने का भव है—सुंदर है, अति सुंदर है। लेकिन यह भाव होना
चाहिए आंतरिक। यह ऊपर से थोपा हुआ नहीं। मजबूरी में नहीं। नहीं तो उसी
व्यक्ति से बदला लेगा वह व्यक्ति, उसी को परेशान करेगा। उसी पर क्रोध
जाहिर करेगा।
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