गुरुवार, दिसंबर 27, 2012

वही व्‍यक्‍ति जीता है जो मरने के लिए तैयार है...


















" वही व्‍यक्‍ति जीता है जो मरने के लिए तैयार है। सच तो यह हे कि वही जीता है जो मृत्‍यु से राज़ी है। केवल वही व्‍यक्‍ति जीवन के योग्‍य है। क्‍योंकि वह भयभीत नहीं है, जो व्‍यक्‍ति मृत्‍यु को स्‍वीकार करता है, मृत्‍यु का स्‍वागत करता है, मेहमान मानकर उसकी आवभगत करता है। उसके साथ रहता है। वही व्‍यक्‍ति जीवन में गहरे उतर सकता है।

जब एक कुत्‍ता मरता है तो दूसरे कुत्‍ते को कभी पता नहीं होता की मैं भी मर सकता हूं। जब भी मरता है, कोई दूसरा ही मरता है। तो कोई कुत्‍ता कैसे कल्‍पना करे के मैं भी मरने वाला हूं। उसने कभी अपने को मरते नहीं देखा। सदा किसी दूसरे ही मरते है। वह कैसे कल्‍पना करे, कैसे निष्‍पति निकाले कि मैं भी मरूंगा। पशु को मृत्‍यु का बोध नहीं होता। इसलिए कोई पशु संसार का त्‍याग नहीं करता। कोई पशु संन्‍यासी नहीं हो सकता है।

केवल एक बहुत ऊंची कोटि की चेतना ही तुम्‍हें संन्‍यास की तरफ ले जा सकती है। मृत्‍यु के प्रति जागने से ही संन्‍यास घटित होता है। और अगर आदमी होकर भी तुम मृत्‍यु के प्रति जागरूक नहीं हो तो तुम अभी पशु ही हो। मनुष्‍य नहीं हुए हो। मनुष्‍य तो तुम तभी बनते हो जब मृत्‍यु का साक्षात्‍कार करते हो। अन्‍यथा तुममें और पशु में कोई फर्क नहीं है। पशु और मनुष्‍य में सब कुछ समान है, सिर्फ मृत्‍यु फर्क लाती है। मृत्‍यु का साक्षात्‍कार कर लेने के बाद तुम पशु नहीं रहते। तुम्‍हें कुछ घटित हुआ है जो कभी किसी पशु को घटित नहीं होता है। अब तुम एक भिन्‍न चेतना हो। "

~ ओशो, विज्ञानं भैरव तंत्र

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