रविवार, जनवरी 27, 2013

प्रकृति मे कोई भी चीज़ नष्ट नहीं होती है, केवल उसका रूपांतरण होता है...



















विज्ञान का यह नियम है,कि प्रकृति मे कोई भी चीज़ नष्ट नहीं होती है,केवल उसका रूपांतरण होता है। जो लोग प्रकृति के अनुसार आचरण करते है, वे प्राकृतिक प्रकोपों के बीच भी सुरक्षित मिल जाते हैं। उदाहरणार्थ भोपाल गैस कांड के दौरान जहां सारे शहर मे त्राही-त्राही मची हुई थी,वहीं तीन परिवार पूरी तरह सुरक्षित पाये गए थे। बाद मे उन्होने जानकारी दी थी कि गैस लीकेज का आभास होते ही उन लोगों ने अपने-अपने घरों के खिड़की-दरवाजों पर गीले कंबल डाल कर भीतर 'हवन' प्रारम्भ कर दिया था।

'हवन' या 'यज्ञ' पूरी तरह 'पदार्थ विज्ञान' पर आधारित प्रक्रिया है। इसके अनुसार 'अग्नि' मे डाले गए पदार्थ 'परमाणुओं' मे विभक्त हो जाते हैं और 'वायु' द्वारा प्रवाहित किए जाते हैं। पर्यावरण को संतुलित बनाए रखने मे 'हवन' या 'यज्ञ' धुरी का कार्य करते थे। इनके परित्याग से ही अति वृष्टि-अनावृष्टि,अति शीत अथवा अति ग्रीष्म की समस्याएँ आती हैं।

भोपाल कांड से सबक लेते हुये वाशिंगटन डी सी मे 'अग्निहोत्र विश्व विद्यालय की स्थापना की गई है, और वहाँ अनवरत 'अग्निहोत्र' चल रहा है, जिसके परिणाम स्वरूप यू एस ए पर छाया ओज़ोन पर्त का छिद्र वहाँ भर गया है, और सरक कर दक्षिण-पूर्व एशिया की ओर आ गया है, जिसके परिणाम स्वरूप जापान मे 'सुनामी' आया और भारत मे भी आया था।

अति शीत और अति ग्रीष्म से भयभीत लोगों को अभी से 'हवन' का सहारा लेना चाहिए इर्द-गिर्द चाहे जो हो वे साफ-साफ सुरक्षित बच जाएँगे। गुजरात मे 'प्लेग' के कृत्रिम कीटाणुओं को छोड़े जाने पर जो विपदा आई थी, उसका समाधान राजीव गांधी सरकार की ओर से बटवाए गए हवन सामाग्री पैकटों  द्वारा हवन करने से हुआ था। यह कोई बहुत पुरानी बातें नहीं हैं। लोगों को अफवाहें फैला कर भय नहीं व्याप्त करना चाहिए बल्कि लोगों को समाधान बताना चाहिए .....

गुरुवार, जनवरी 17, 2013

ध्यान.....


























ध्यान ....मेरे गुरूजी कहते है की ध्यान उतना ही जरूरी है जितना खाना खाना या स्नान करना यां फिर सांस लेना,, उनका कहना है की चाहे कुछ भी क्यों न हो जाये लेकिन 24 घंटे में कम से कम आधा घंटा ध्यान तो करना ही चाहिए, उनका कहना है की चाहे हम कोई भी पूजा पद्धति अपनाये लेकिन उसका अंत ध्यान ही होता है क्योंकि ध्यान में ही समाधी अवस्था प्राप्त होती है ,, जिसमे परमात्मा का साक्षात्कार हो जाता है जिसमे सब विधि विधान, मंत्र जाप, पूजा , सब कुछ छूट जाता है , जब आप ध्यान करते है तो आस पास का वातावरण आपके अनूकुल हो जाता है और आपके अन्दर की Negativity धीरे धीरे दूर होना शुरू हो जाती है ..जो भी आपके लिए सही है कुदरत उस रास्ते पर आपको चलाना शुरू कर देती है , अगर आप शराब, सिगरेट, तम्बाकू , या फिर जुआ वगैरह नहीं छोड़ सकते तो ध्यान करना शुरू कर दीजिये ,, कुदरती सब आपके ही अनुकूल होता जायेगा


मंगलवार, जनवरी 15, 2013

नहीं घुटने टेकते कभी वीर....



















हो कितना भी विस्तृत, गहरा तिमिर, एक नन्हा दीपक, देता उसे चीर.... नहीं घुटने टेकते कभी वीर, संघर्ष कर, मत हो अधीर... हो कितना भी क्रोधित, तीव्र भंवर, नाविक ही जीते, ठान ले अगर... नहीं घुटने टेकते कभी वीर, संघर्ष कर, मत हो अधीर... हो कितना भी उत्तंग, हिम-शिखर, दृढ आरोही होते, विजयी उस पर.. नहीं घुटने टेकते कभी वीर, संघर्ष कर, मत हो अधीर... हो कितना भी तेरा, जीवन दुष्वर, कर कठिनाई से, युद्ध डट कर ... नहीं घुटने टेकते कभी वीर, संघर्ष कर, मत हो अधीर...

सोमवार, जनवरी 07, 2013

आंखों में पैदा हो जाएगा जादूई सम्मोहन इन आसान नुस्खों से ...














सामान्य कद-काठी वाले व्यक्ति में भी कई बार गजब का आकर्षण देखा गया है। यह अद्भुत आकर्षण उनकी आंखों के कारण ही होता है। आंखो की इसी चमत्कारी सम्मोहन शक्ति के दम पर अकेला व्यक्ति हजारों-लाखों की भीड़ को प्रभावित ही नहीं अपनी मर्जी के मुताबिक चला भी सकता है।
नीचे दिये जा रहे इन नुस्खों से आंखों में जादूई चमक पैदा कर सकते हैं
त्राटक या दीप त्राटक का अभ्यास  करें।
- किसी मार्गदर्शक के सहयोग से शीर्षासन या सर्वांगासन का नियमित अभ्यास   करें।
- ज्यादा से ज्यादा पानी पीएं, दिन में कई बार आंखों पर ठंडे पानी के छींटे मारें।
- शुद्ध और प्राकृतिक आहार-विहार करें। बाजारू खाने से यथा संभव बचें।
- आंखों का काम करते समय बीच-बीच में कुछ समय के लिये आंखें बंद करके खोई हुई ऊर्जा को फिर से प्राप्त करें।
- किसी योग विशेषज्ञ से सीखकर या मार्गदर्शन में प्रतिदिन रात्रि के प्रथम और अंतिम पहर में 25 से 30 मिनिट तक बिन्दु पर ध्यान केंद्रित करें।
- सम्मोहन मंत्र ऊं शं सम्मोहनाय फट् का जप आज्ञाचक्र यानी दोनों भौंहों के बीच ध्यान केंद्रित करते हुए जपें।