हो कितना भी विस्तृत, गहरा तिमिर, एक नन्हा दीपक, देता उसे चीर.... नहीं घुटने टेकते कभी वीर, संघर्ष कर, मत हो अधीर... हो कितना भी क्रोधित, तीव्र भंवर, नाविक ही जीते, ठान ले अगर... नहीं घुटने टेकते कभी वीर, संघर्ष कर, मत हो अधीर... हो कितना भी उत्तंग, हिम-शिखर, दृढ आरोही होते, विजयी उस पर.. नहीं घुटने टेकते कभी वीर, संघर्ष कर, मत हो अधीर... हो कितना भी तेरा, जीवन दुष्वर, कर कठिनाई से, युद्ध डट कर ... नहीं घुटने टेकते कभी वीर, संघर्ष कर, मत हो अधीर...
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मंगलवार, जनवरी 15, 2013
नहीं घुटने टेकते कभी वीर....
हो कितना भी विस्तृत, गहरा तिमिर, एक नन्हा दीपक, देता उसे चीर.... नहीं घुटने टेकते कभी वीर, संघर्ष कर, मत हो अधीर... हो कितना भी क्रोधित, तीव्र भंवर, नाविक ही जीते, ठान ले अगर... नहीं घुटने टेकते कभी वीर, संघर्ष कर, मत हो अधीर... हो कितना भी उत्तंग, हिम-शिखर, दृढ आरोही होते, विजयी उस पर.. नहीं घुटने टेकते कभी वीर, संघर्ष कर, मत हो अधीर... हो कितना भी तेरा, जीवन दुष्वर, कर कठिनाई से, युद्ध डट कर ... नहीं घुटने टेकते कभी वीर, संघर्ष कर, मत हो अधीर...
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