बुधवार, फ़रवरी 27, 2013

ॐ नमः शिवाय.....
























“मेरे लिये पाषाण की शिला और स्वर्ण की शिला में कोई अंतर नहीं" !

 मैं अपने भक्तों से भी यही अपेक्षा करता हूँ, कि वे भेदभाव न करें!
 क्योंकि ये सब मिट्टी से ही उपजा है! और एक दिन सबकुछ मिट्टी में
 ही मिल जायेगा!” – महादेव
ये तो अत्यंत साधारण सा तथ्य है, जिसे ईश्वर के सच्चे भक्त समझते भी हैं,

 और तदनुसार कार्य भी करते हैं! किन्तु अहंकार, लोभ, ईर्ष्या और मोह के
 मद में चूर व्यक्तियों को समभाव में निहित दैवीय भावना समझ में नहीं आती!
 जो समझ गया, शिवत्व में लीन हो गया! जो नहीं, संभवतः, मात्र भस्म ही हुआ .....

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