मंगलवार, मार्च 26, 2013

अकाल मृत्यु वो मरे जो काम करे चंडाल का,काल उसका क्या करे जो भक्त हो महाकाल का...


























दक्ष -प्रजापति ने अपने यग्य में 'शिव" का भाग नहीं रखा ,जिससे कुपित होकर -माँ पार्वती ने दक्ष के यग्य मंडप में योगाग्नि द्वारा अपना शरीर को भस्म कर दिया |यह विदित होने के बाद  -भगवान् "शिव"अत्यंत  क्रुद्ध हो गए एवं नग्न होकर पृथ्वी पर भ्रमण करने लगे | एक दिन वह [शिव ] नग्नावस्था में ही ब्राह्मणों की नगरी में पहुँच गए | शिवजी के नग्न स्वरूप को देखकर भूदेव की स्रियां[भार्या ] उन पर मोहित हो गईं| स्त्रियों की मोहित अवस्था को देखकर ब्राह्मणों ने शिवजी को शाप दे दिया कि-ये लिंग विहीन तत्काल हो जाएँ एवं शिवजी शाप से युक्त भी हो गए ,जिस कारण  से तीनों लोकों में घोर उत्पात होने लगा |
---समस्त देव ,ऋषि ,मुनि व्याकुल होकर ब्रह्माजी की शरण में गए | ब्रह्मा ने योगबल से शिवलिंग के अलग होने का कारण जान लिया और समस्त देवताओं ,ऋषियों ,एवं मुनियों को साथ लेकर शिवजी के पास गए -ब्रह्मा ने शिवजी से प्रार्थना की कि -आप अपने लिंग को पुनः धारण करें -अन्यथा तीनों लोक नष्ट हो जायेंगें | स्तुति को सुनकर -भगवान् शिव बोले -आज से सभी लोग मेरे लिंग की पूजा प्रारंभ कर दें ,तो मैं अपने लिंग को धारण कर लूँगा | शिवजी की बात सुनकर सर्वप्रथम ब्रह्मा ने सुवर्ण का शिवलिंग बनाकर उसका पूजन किया | पश्चात देवताओं ,ऋषियों और मुनियों ने  शिवलिंग बनाकर पूजन किया | तभी से शिवलिंग के पूजन का प्रारंभ हुआ ||जो लोग किसी तीर्थ में -मृतिका - के शिवलिंग बनाकर -उनका हजार बार अथवा लाख या करोड़ बार सविधि पूजन करते हैं-वे शिव स्वरूप हो जाते हैं || जो मनुष्य तीर्थ में मिटटी ,भस्म ,गोबर अथवा बालू का शिवलिंग बनाकर एक बार भी उसका सविधि पूजन करता है -वह दस हजार कल्प तक स्वर्ग में निवास करता है ||-शिवलिंग का विधि पूर्वक पूजन करने से -मनुष्य -संतान ,धन ,धान्य  ,विद्या ,ज्ञान ,सद बुद्धि ,दीर्घायु ,और मोक्ष की प्राप्ति करता है ||--जिस स्थान पर शिवलिंग का पूजन होता है ,वह तीर्थ नहीं होते हुआ भी तीर्थ बन जाता है | जिस स्थान पर शिवलिंग का पूजन होता है ,उस स्थान पर जिस मनुष्य की मृत्यु होती है-वह शिवलोक को प्राप्त  करता है | जो शिव -शिव ,शिव नाम का उच्चारण करता है -वह परम पवित्र एवं परम श्रेष्ठ हो जाता है ||--भाव -जो मनुष्य शिव -शिव का स्मरण करते हुए प्राण त्याग देता है -वह अपने करोड़ों जन्म के पापों से मुक्त होकर शिवलोक को प्राप्त करता है ||
शिव =का - अर्थ है -कल्याण || "शिव "यह दो अक्षरों वाला नाम परब्रह्मस्वरूप एवं तारक है इससे भिन्न और कोई दूसरा तारक नहीं है --{"तारकं ब्रह्म परमं शिव इत्य्क्षर द्वयं |नैतस्मादपरम किंचित तारकं ब्रह्म सर्वथा ||} साभार- पंडित कन्हैयालाल झा शास्त्री

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गुरुवार, मार्च 21, 2013

108 का रहस्य ! (The Mystery of 108) !
























वेदान्त में एक मात्रकविहीन सार्वभौमिक ध्रुवांक 108 का उल्लेख मिलता है जिसका हजारों वर्षों पूर्व हमारे ऋषियों (वैज्ञानिकों) ने अविष्कार किया था l
मेरी सुविधा के लिए मैं मान लेता हूँ कि, 108 = ॐ (जो पूर्णता का द्योतक है)
प्रकृति में 108 की विविध अभिव्यंजना :
1. सूर्य और पृथ्वी के बीच की दूरी/सूर्य का व्यास = 108 = 1 ॐ
150,000,000 km/1,391,000 km = 108 (पृथ्वी और सूर्य के बीच 108 सूर्य सजाये जा सकते हैं)
2. सूर्य का व्यास/ पृथ्वी का व्यास = 108 = 1 ॐ
1,391,000 km/12,742 km = 108 = 1 ॐ
सूर्य के व्यास पर 108 पृथ्वियां सजाई सा सकती हैं .
3. पृथ्वी और चन्द्र के बीच की दूरी/चन्द्र का व्यास = 108 = 1 ॐ
384403 km/3474.20 km = 108 = 1 ॐ
पृथ्वी और चन्द्र के बीच १०८ चन्द्रमा आ सकते हैं .
4. मनुष्य की उम्र 108 वर्षों (1ॐ वर्ष) में पूर्णता प्राप्त करती है .
वैदिक ज्योतिष के अनुसार मनुष्य को अपने जीवन काल में विभिन्न ग्रहों की 108 वर्षों की अष्टोत्तरी महादशा से गुजरना पड़ता है .
5. एक शांत, स्वस्थ और प्रसन्न वयस्क व्यक्ति 200 ॐ श्वास लेकर एक दिन पूरा करता है .
1 मिनट में 15 श्वास >> 12 घंटों में 10800 श्वास >> दिनभर में 100 ॐ श्वास, वैसे ही रातभर में 100 ॐ श्वास
6. एक शांत, स्वस्थ और प्रसन्न वयस्क व्यक्ति एक मुहुर्त में 4 ॐ ह्रदय की धड़कन पूरी करता है .
1 मिनट में 72 धड़कन >> 6 मिनट में 432 धडकनें >> 1 मुहूर्त में 4 ॐ धडकनें ( 6 मिनट = 1 मुहूर्त)
7. सभी 9 ग्रह (वैदिक ज्योतिष में परिभाषित) भचक्र एक चक्र पूरा करते समय 12 राशियों से होकर गुजरते हैं और 12 x 9 = 108 = 1 ॐ
8. सभी 9 ग्रह भचक्र का एक चक्कर पूरा करते समय 27 नक्षत्रों को पार करते हैं और प्रत्येक नक्षत्र के चार चरण होते हैं और 27 x 4 = 108 = 1 ॐ
9. एक सौर दिन 200 ॐ विपल समय में पूरा होता है. (1 विपल = 2.5 सेकेण्ड)
1 सौर दिन (24 घंटे) = 1 अहोरात्र = 60 घटी = 3600 पल = 21600 विपल = 200 x 108 = 200 ॐ विपल
*** 108 का आध्यात्मिक अर्थ ***
1 सूचित करता है ब्रह्म की अद्वितीयता/एकत्व/पूर्णता को
0 सूचित करता है वह शून्य की अवस्था को जो विश्व की अनुपस्थिति में उत्पन्न हुई होती
8. सूचित करता है उस विश्व की अनंतता को जिसका अविर्भाव उस शून्य में ब्रह्म की अनंत अभिव्यक्तियों से हुआ है .
अतः ब्रह्म, शून्यता और अनंत विश्व के संयोग को ही 108 द्वारा सूचित किया गया है .
जिस प्रकार ब्रह्म की शाब्दिक अभिव्यंजना प्रणव ( अ + उ + म् ) है और नादीय अभिव्यंजना ॐ की ध्वनि है उसी प्रकार ब्रह्म की गाणितिक अभिव्यंजना 108 है .!!


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मंगलवार, मार्च 19, 2013

जीवन और मृत्यु







































मुझे कहा गया है कि मैं जीवन और मृत्यु के संबंध में बोलूं।
 यह असंभव है बात। प्रश्न तो है सिर्फ जीवन का और मृत्यु 
जैसी कोई चीज ही नहीं है। जीवन ज्ञात होता है, तो जीवन
 रह जाता है। और जीवन ज्ञात नहीं होता, तो सिर्फ मृत्यु
 रह जाती है।
मनुष्य मृत्यु नहीं है, मनु्ष्य अमृत है। समस्त जीवन 

अमृत है। लेकिन हम अमृत की ओर आंख ही नहीं उठाते।
 हम जीवन की तरफ, जीवन की दिशा में कोई खोज ही 
नहीं करते हैं, एक कदम भी नहीं उठाते। जीवन से रह जाते हैं 
अपरिचित और इसलिए मृत्यु से भयभीत प्रतीत होते हैं।
 इसलिए प्रश्न जीवन और मृत्यु का नहीं है, प्रश्न है सिर्फ जीवन का।.........

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शनिवार, मार्च 09, 2013

बिल्वपत्र के ये अचूक उपाय ...

























कम ही लोगों को पता है शिवपुराण में बताए बिल्वपत्र के ये अचूक उपाय
वेद, प्रकृति रूप ईश्वर की अपार महिमा व शक्तियां उजागर करते हैं। धर्मग्रंथों में वेद भगवाव शिव का स्वरूप भी पुकारे गए हैं। यानी प्रकृति का कण-कण शिव रूप ही माना गया है। इसी कड़ी में बिल्व वृक्ष साक्षात शिव का ही रूप माना गया है।
शिवपुराण में तो बिल्ववृक्ष की जड़ में सभी तीर्थस्थान माने गए हैं। इसलिए बिल्ववृक्ष की पूजा शिव उपासना ही मानकर कई देवताओं की पूजा का पुण्य देने वाली मानी गई है। खासतौर पर हिन्दू धर्म परंपराओं में महाशिवरात्रि (10 मार्च) को भगवान शिव की उपासना की शुभ घड़ी में बिल्ववृक्ष पूजा के कई अचूक उपाय सांसारिक जीवन की कई इच्छाओं को पूरा करने वाले माने गए हैं। जानिए शिवपुराण में बताए बिल्ववृक्ष पूजा के ये खास उपाय किन-किन मुरादों को पूरा करते हैं-
- बिल्ववृक्ष के नीचे शिवलिंग पूजा से सभी मनोकामना पूरी होती है।
- बिल्व की जड़ का जल अपने सिर पर लगाने से उसे सभी तीर्थों की यात्रा का पुण्य पा जाता है।
- गंध, फूल, धतूरे से जो बिल्ववृक्ष की जड़ की पूजा करता है, उसे संतान और सभी सुख मिल जाते हैं।
- बिल्ववृक्ष के बिल्वपत्रों से पूजा करने पर सभी पापों से मुक्त हो जाते हैं।
- बिल्व की जड़ के पास किसी शिव भक्त को घी सहित अन्न या खीर दान देता है, वह कभी भी धनहीन या दरिद्र नहीं होता। क्योंकि यह श्रीवृक्ष भी पुकारा जाता है। यानी इसमें देवी लक्ष्मी का भी वास होता है।
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बुधवार, मार्च 06, 2013

करो या मरो .....
















मंत्र:- ॐ ह्रौं ॐ जूं सः भूर्भुवः स्वः त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् , उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् भूर्भुवः स्वरों जूं सः  ह्रौं ॐ 

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शनिवार, मार्च 02, 2013

बेईमानी और चालाकी से अर्जित किए गए वैभव बालू की दीवार ही होती है...













न जाने किस कारण लोगों के मन में यह भ्रम पैदा हो गया है
 कि ईमानदारी और नीतिनिष्ठा अपनाकर घाटा और नुकसान ही
 हाथ लगता है । संभवतः इसका कारण यह है कि लोग बेईमानी 
अपनाकर छल-बल से, धूर्तता और चालाकी द्वारा जल्दी-जल्दी धन
 बटोरते देखे जाते हैं । तेजी से बढ़ती संपन्नता देखकर देखने वालों
 के मन में भी वैसा ही वैभव अर्जित करने की आकांक्षा उत्पन्न 
होती है । वे देखते हैं कि वैभव संपन्न लोगों का रौब और दबदबा
 रहता है । किंतु ऐसा सोचते समय वे यह भूल जाते हैं कि बेईमानी 
और चालाकी से अर्जित किए गए वैभव का रौब और दबदबा 
बालू की दीवार ही होती है, जो थोड़ी-सी हवा बहने पर ढह जाती है
 तथा यह भी कि वह प्रतिष्ठा दिखावा, छलावा मात्र होती है क्योंकि 
स्वार्थ सिद्ध करने के उद्देश्य से कतिपय लोग उनके मुँह पर उनकी 
 प्रशंसा अवश्य कर देते हैं, परंतु हृदय में उनके भी आदर भाव नहीं
 होता ।इसके विपरीत ईमानदारी और मेहनत से काम करने वाले,
 नैतिक मूल्यों को अपनाकर नीतिनिष्ठ जीवन व्यतीत करने वाले
 भले ही धीमी गति से प्रगति करते हों परन्तु उनकी प्रगति ठोस
 होती है तथा उनका सुयश देश काल की सीमाओं को लांघकर
 विश्वव्यापी और अमर हो जाता है । 
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