सोमवार, अगस्त 26, 2013

अनाहत नाद, ब्रह्मांड में सतत् गूँजता रहता है.....

























ॐ के उच्चारण को अनाहत नाद कहते हैं, ये ब्रह्म नाद के रूप मेँ प्रत्येक व्यक्ति के भीतर और इस ब्रह्मांड में सतत् गूँजता रहता है। 
इसके गूँजते रहने का कोई कारण नहीं। सामान्यत: नियम है कि ध्वनि उत्पन्न होती है किसी की टकराहट से, लेकिन अनाहत को उत्पन्न नहीं किया जा सकता।  
ओ, उ और म उक्त तीन अक्षरों वाले शब्द की महिमा अव्यक्त है। यह नाभि, हृदय और आज्ञा चक्र को जगाता है। इसे प्रणव साधना भी कहा जाता है। इसके अनेक चमत्कार हैँ। प्रत्येक मंत्र के पूर्व इसका उच्चारण किया जाता है। योग साधना में इसका अधिक महत्व है। इसके निरंतर उच्चारण करते रहने से अनाहत को जगाया जा सकता है।  

विधि नंबर 1 :-  
प्राणायाम या कोई विशेष आसन करते वक्त इसका उच्चारण किया जाता है। केवल प्रणव साधना के लिए ॐ का उच्चारण पद्मासन, सुखासन, वज्रासन में बैठकर कर सकते हैं। इसका उच्चारण 5, 7, 11, 21 बार अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं। ॐ जोर से बोल सकते हैं, धीरे-धीरे बोल सकते हैं। बोलने की जरूरत जब समाप्त हो जाए तो इसे अपने अंतरमन में सुनने का अभ्यास बढ़ाएँ।  

सावधानी :- उच्चारण करते वक्त लय का विशेष ध्यान रखें। इसका उच्चारण प्रभात या संध्या में ही करें। उच्चारण करने के लिए कोई एक स्थान नियुक्त हो। हर कहीं इसका उच्चारण न करें। उच्चारण करते वक्त पवित्रता और सफाई का विशेष ध्यान रखें। 

 लाभ :- संसार की समस्त ध्वनियों से अधिक शक्तिशाली, मोहक, दिव्य और सर्वश्रेष्ठ आनंद से युक्तनाद ब्रम्ह के स्वर से सभी प्रकार के रोग और शोक मिट जाते हैं। इससे मानसिक बीमारियाँ दूर होती हैं। इससे हमारे शरीर की ऊर्जा संतुलन में आ जाती है। इसके संतुलन में आने पर चित्त शांत हो जाता है।
व्यर्थ के मानसिक द्वंद्व, तनाव, संताप और नकारात्मक विचार मिटकर मन की शक्ति बढ़ती है। मन की शक्ति बढ़ने से संकल्प शक्ति और आत्मविश्वास बढ़ता है। सम्मोहन साधकों के लिए इसका निरंतर जाप करना अनिवार्य है।  

 विधि नंबर 2 :-
किसी शांत जगह पर अपने दोनोँ हाथोँ से अपने कानोँ को ढंके, कानोँ को पूरी तरह हाथोँ से सील करले आपको एक आवाज सुनाई देगी, यही अनाहत नाद या ब्रह्म नाद है, ये ध्वनि या नाद आपके शरीर के अंदर 24 घंटे होते रहता है, ये हमेशा आपके शरीर को ॐ के रूप मेँ अंदर से वाद्यित् करता रहता है। इसे ध्यान के रूप मेँ परिणित कर आप अतुल्य लाभ उठा सकते हैँ।
 

 सर्वप्रथम एक स्वच्छ, व शांत कमरे मेँ आसन लगाकर बैठ जाइए, अपने सामने एक घी का दीपक जला लीजिए, अपने कानोँ को दोनोँ हाथोँ से कसकर बंद कर लीजिए ताकि आपको नाद सुनाई देने लगे, मन मेँ उस नाद के समान्तर ॐ का उच्चारण कीजिए। ये क्रिया 5 मिनिट तक कीजिए, रोजाना सुबह व शाम ये क्रिया कीजिए, कुछ समय बाद अभ्यास से आप ध्यान की अवस्था मेँ बिना कानोँ को ढंके, नाद को सुन पाएंगेँ, रोजमर्रा के काम करते वक्त भी अगर आप कुछ सेकंड के लिए भी ध्यान लगाएं तो भी आप शोरगुल मेँ भी अनाहत नाद को सुन सकते हैँ।               अगर आप ऐसा कर पाने मेँ सफल हो गए तो आप अपने आपको इस क्रिया मेँ सिद्ध कर लेँगे। "करत-करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान" ये बात याद रखिए।   

सावधानी :- पवित्रता व स्वच्छता पर विशेष ध्यान देँ। ब्रह्मचर्य का पालन करेँ।  
 लाभ :-विधि नंबर 01 के समान  

 नोट :- दोनोँ विधियोँ मेँ ॐ का उच्चारण विषम संख्या मेँ ही करेँ। अर्थात् 5, 7, 11, 21, या 51, उच्चारण करते समय पहले ॐ मेँ "ओ" शब्द छोटा व "म" शब्द लम्बा खीँचे, द्वितीय ॐ मेँ "ओ" तथा "म" दोनोँ बराबर रखेँ, तृतीय उच्चारण मेँ पुनः "ओ" छोटा व "म" लम्बा रखेँ। यही क्रम चलने देँ। आपको शीघ्र ही लाभ होगा, ऐसा मेरा विश्वास है।
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शुक्रवार, अगस्त 02, 2013

!! योग साधना !!

























मनुष्य देवता बन सकता है ! यदि मनुष्य अपने कर्मो को तन मन से निःस्वार्थ भाव से करे तो ! लेकिन मनुष्य में जीवन भर अपने कर्मो से अधिक फल भोगने का इक्षा दुखी जीवन बना देता है ! जीवन भर सुख आनंद भोगने के बाद, पाप कर्म करने के बाद भी मंदिर, देवालयों का चक्र लगाने लगता है ! कुछ जीवात्मा तो मनुष्य योनि में सुख भोगने के लिए ही आता है ! चाहे प्रकृति नष्ट क्यों नहीं हो जाय उसे सुख भोगना है ! वैसे मनुष्य अकाल मृत्यु का कारन बनकर जीव शरीर को त्याग करता है !
नियम पूर्वक किये गए योग साधना में कम से कम तीन वर्ष में दिव्य अनुभूति स्वतः आने लगता है ! यदि सिद्ध गुरु मिल जाय तो गुरु कृपा से वह अनुभव एक से तीन दिन में प्राप्त हो सकता है !
योग साधना में इतना शक्ति है की आस पास का गतिविधि अपने अनुकूल बनाया जा सकता है ! मन के अनुसार व्यक्ति पर ही नहीं बल्कि प्रकृति पर भी असर होता है ! योग साधना में प्राप्त सूक्षम शक्ति का कण प्राकृतिक तत्व को भी परिवर्तित कर देता है ! मन के अनुसार प्रकृति बदलने लगता है !
योग साधना से साधक को सुरक्षा चक्र प्राप्त होता है ! जो हर प्रकार से मानवीय एवं प्राकृतिक दुर्घटना से बचाता है !
साधक को भविष्य में होने वाले घटना के बारे में पूर्व ज्ञात हो जाता है! जिससे वो अपने निजी कार्यक्रम को उसके अनुकूल बना सकते हैं ! यह सूक्षम शक्ति तब तक रहता है जब तक साधक इस शक्ति को गोप्यता के साथ धारण किये रहता है !
योग साधना तप है जिसमे भौतिक शरीर को लोहे की भांति तपाते हैं और फिर सूक्षम शक्ति को धारण करने योग्य बनाते हैं ! साधना का मूल उद्धेश्य आनंदमय जीवन के साथ समाजिक उत्थान होना चाहिए !
रत्येक जीव शिव का ही अंश है ! उनसे ही उद्गम है, और उनमें ही समाहित हो जाना है! शिवत्व से मिलन के लिये शिव-तत्व तो अनिवार्य है ! आत्म-शुद्धि तो अनिवार्य है !  ॐ नमः शिवाय! 
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